कलयुग में सत्ययुग
विशेष :- वर्तमान में (सन् 1997 से) कलयुग की बिचली पीढ़ी चल रही है यानि
कलयुग का दूसरा (मध्य वाला) चरण चल रहा है। इस समय कलयुग 5505 वर्ष बीत चुका
है। कुछ वर्षों में परमेश्वर कबीर जी के ज्ञान का डंका सर्व संसार में बजेगा यानि कबीर जी
के ज्ञान का बोलबाला होगा, खरबों जीव सतलोक जाएंगे। यह भक्ति युग एक हजार वर्ष
तक तो निर्बाध चलेगा, उसके पश्चात् दो लाख वर्ष तक भक्ति में 50 प्रतिशत आस्था
तीस प्रतिशत व्यक्तियों में भक्ति की लगन रहेगी। यहाँ तक यानि
(5500़1000़200000़130000त्र336500 वर्ष) तीन लाख छत्तीस हजार पाँच सौ वर्ष तक
कलयुग का दूसरा चरण चलेगा। इसके पश्चात् कलयुग का अंतिम चरण चलेगा। पाँच सौ
(500) वर्षों में भक्ति चाहने वाले व्यक्ति मात्रा 5ः रह जाएंगे। तीसरे चरण का समय पचानवे
हजार पाँच सौ (95500) वर्ष रह जाएगा। फिर भक्ति चाहने वाले तो होगें, परंतु यथार्थ
भक्तिविधि समाप्त हो जाएगी। जो व्यक्ति हजार वर्ष वाले समय में तीनों मंत्रा लेकर पार नहीं
हो पाएंगे। वे ही 50ः तथा 30ः, 5ः, उस समय की जनसँख्या में भक्ति चाहने वाले
रहेंगे। वे पार नहीं हो पाते, परंतु उनकी भक्ति (तीनों मंत्रों) की कमाई अत्यधिक हो जाती
है। वे सँख्या में अरबों होते हैं। वे ही सत्ययुग, त्रोतायुग, द्वापरयुग में ऋषि-महर्षि, प्रसिद्ध
सिद्ध तथा देवताओं की पदवी प्राप्त करते हैं। उनका भक्ति कर्मों के अनुसार सत्ययुग में
जन्म होता है। वे भक्ति ब्रह्म तक की करते हैं, परंतु सिद्धियाँ गजब की होती हैं। वे पूर्व जन्म
की भक्ति की शक्ति से होती हैं। कलयुग में वे ही ब्राह्मण-ऋषि उन्हीं वेदों को पढ़ते हैं। ब्रह्म
की भक्ति ओउम् (¬) नाम जाप करके करते हैं, परंतु कुछ भी चमत्कार नहीं होते। कारण
है कि वे तीनों युगों में अपनी पूर्व जन्म की भक्ति शक्ति को शॉप-आशीर्वाद देकर सिद्धियों
का प्रदर्शन करके समाप्त करके सामान्य प्राणी रह जाते हैं, परंतु उनमें परमात्मा की भक्ति
की चाह विद्यमान रहती है। कलयुग में काल सतर्क हो जाता है। वेदविरूद्ध ज्ञान का प्रचार
करवाता है। अन्य देवताओं की भक्ति में आस्था दृढ़ करा देता है। जैसे 1997 से 2505 वर्ष
पूर्व (यानि ईशा मसीह से 508 वर्ष पूर्व) आदि शंकराचार्य जी का जन्म हुआ था। उन्होंने 20
वर्ष की आयु में अपना मत दृढ़ कर दिया कि श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव जी, माता
दुर्गा तथा गणेश आदि-आदि की भक्ति करो। विशेषकर तम् गुण भगवान शिव की भक्ति को
अधिक दृढ़ किया क्योंकि वे {आदि शंकराचार्य जी (शिवलोक से आए थे)} शिव जी के गण
थे। इसलिए शंकर जी के मार्ग के आचार्य यानि गुरू (शंकराचार्य) कहलाए। वर्तमान तक
राम, कृष्ण, विष्णु, शिव तथा अन्य देवी-देवताओं की भक्ति का रंग चढ़ा है। संसार में अरबों
मानव भक्ति चाहने वाले हैं। वे किसी न किसी धर्म या पंथ से गुरू से जुड़े हैं। परंतु भक्ति
शास्त्राविरूद्ध कर रहे हैं। परमेश्वर वि.संवत् 1575 (सन् 1518) तक 120 वर्ष में गुरू पद
पर एक सौ पन्द्रह (115) वर्ष रहकर 64 लाख (चौंसठ लाख) भक्तों में भक्ति की प्रेरणा को
फिर जागृत किया। उनमें पुनः भक्ति बीज बोया। फिर सबकी परीक्षा ली। वे असफल रहे,
परंतु गुरू द्रोही नहीं हुए। उनका अब जन्म हो रहा है। सर्वप्रथम वे चौंसठ लाख मेरे (संत
रामपाल दास) से जुड़ेंगे। उसके पश्चात् वे जन्मेंगे जिन्होंने एक हजार वर्ष के पश्चात् 2
लाख तथा 1 लाख 30 हजार वर्ष तक भक्ति में लगे रहे, परंतु पार नहीं हुए। जो चौंसठ
लाख हैं, ये वे प्राणी हैं जो एक हजार वर्ष वाले समय में रह गए थे, परंतु धर्मराज के दरबार
प्रकट होकर उनको धर्मराज से छुड़वाकर मीनी सतलोक में ले गए थे। उनका जन्म अपने
आने के (कलयुग में वि.संवत् 1455 के) समय के आसपास दिया था जो अभी तक मानव
जीवन प्राप्त करते आ रहे हैं।
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