Tuesday, 31 March 2020

पत्थर को दूध पिलाना’’

पत्थर को दूध पिलाना’’
नामदेव द्वारा बिठल भगवान की पत्थर की मूर्ति को दूध पिलाने का वर्णनः- नामदेव
जी के माता-पिता भगवान बिठल की पत्थर की मूर्ति की पूजा करते थे। घर पर एक
अलमारी में मूर्ति रखी थी। प्रतिदिन मूर्ति को दूध का भोग लगाया जाता था। एक कटोरे
में दूध गर्म करके मीठा मिलाकर पीने योग्य ठण्डा करके कुछ देर मूर्ति के सामने रख देते
थे। आगे पर्दा कर देते थे जो अलमारी पर लगा रखा था।

कुछ देर पश्चात् उसे उठाकर
अन्य दूध में डालकर प्रसाद बनाकर सब पीते थे।
नामदेव जी केवल 12 वर्ष के बच्चे थे। एक दिन माता-पिता को किसी कार्यवश दूर
अन्य गाँव जाना पड़ा। अपने पुत्रा नामदेव से कहा कि पुत्रा! हम एक सप्ताह के लिए अन्य
गाँव में जा रहे हैं। आप घर पर रहना। पहले बिठल जी को दूध का भोग लगाना, फिर बाद
में भोजन खाना। ऐसा नहीं किया तो भगवान बिठल नाराज हो जाऐंगे और अपने को शॉप
दे देंगे। अपना अहित हो जाएगा। यह बात माता-पिता ने नामदेव से जोर देकर और कई
बार दोहराई और यात्रा पर चले गए। नामदेव जी ने सुबह उठकर स्नान करके, स्वच्छ वस्त्रा
पहनकर दूध का कटोरा भरकर भगवान की मूर्ति के सामने रख दिया और दूध पीने की
प्रार्थना की, परंतु मूर्ति ने दूध नहीं पीया। भक्त ने भी भोजन तक नहीं खाया। तीन दिन बीत
गए।

  प्रतिदिन इसी प्रकार दूध मूर्ति के आगे रखते और विनय करते कि हे बिठल भगवान!
दूध पी लो। आज आपका सेवादार मर जाएगा क्योंकि और अधिक भूख सहन करना मेरे
वश में नहीं है। माता-पिता नाराज होंगे। भगवान मेरी गलती क्षमा करो। मुझसे अवश्य कोई
गलती हुई है। जिस कारण से आप दूध नहीं पी रहे। माता-पिता जी से तो आप प्रतिदिन
भोग लगाते थे। नामदेव जी को ज्ञान नहीं था कि माता-पिता कुछ देर दूध रखकर भरा
कटोरा उठाकर अन्य दूध में डालते थे। वह तो यही मानता था कि बिठल जी प्रतिदिन दूध
पीते थे।

चौथे दिन बेहाल बालक ने दूध गर्म किया और दूध मूर्ति के सामने रखा और
कमजोरी के कारण चक्कर खाकर गिर गया। फिर बैठे-बैठे अर्जी लगाने लगा तो उसी समय
मूर्ति के हाथ आगे बढ़े और कटोरा उठाया। सब दूध पी लिया। नामदेव जी की खुशी का
कोई ठिकाना नहीं था। फिर स्वयं भी खाना खाया, दूध पीया। फिर तो प्रतिदिन बिठल
भगवान जी दूध पीने लगे।
सात-आठ दिन पश्चात् नामदेव के माता-पिता लौटे तो सर्वप्रथम पूछा कि क्या बिठल
जी को दूध का भोग लगाया? नामदेव ने कहा कि माता-पिता जी! भगवान ने तीन दिन तो
दूध नहीं पीया। 
मेरे से पता नहीं क्या गलती हुई। मैंने भी खाना नहीं खाया। चौथे दिन
भगवान ने मेरी गलती क्षमा की, तब सुबह दूध पीया

तब मैंने भी खाना खाया, दूध पीया।
माता-पिता को लगा कि बालक झूठ बोल रहा है। इसीलिए कह रहा है कि चौथे दिन दूध
पीया। मूर्ति दूध कैसे पी सकती है? माता-पिता ने कहा सच-सच बता बेटा, नहीं तो तुझे पाप
लगेगा। बिठल भगवान जी ने वास्तव में दूध पीया है। नामदेव जी ने कहा, माता-पिता
वास्तव में सत्य कह रहा हूँ। पिताजी ने कहा कि कल सुबह हमारे सामने दूध पिलाना।
अगले दिन नामदेव जी ने बिठल भगवान की पत्थर की मूर्ति के सामने दूध का कटोरा रखा।
उसी समय मूर्ति के हाथ आगे बढ़े, कटोरा उठाया और सारा दूध पी गए। माता-पिता तो
पागल से हो गये। गली में जाकर कहने लगे कि नामदेव ने बिठल भगवान की मूर्ति को
सचमुच दूध पिला दिया। यह बात सारे गाँव में आग की तरह फैल गई, परंतु किसी को
विश्वास नहीं हो रहा था। बात पंचों के पास पहुँच गई कि नामदेव का पिता झूठ कह रहा
है कि मेरे पुत्रा नामदेव ने पत्थर की मूर्ति को दूध पिला दिया। पंचायत हुई।

 नामदेव तथा
उसके पिता को पंचायत में बुलाया गया और कहा कि क्या यह सच है कि नामदेव ने बिठल
भगवान की मूर्ति को दूध पिलाया था। पिता ने कहा कि हाँ! हमारे सामने पिलाया था। पंचों
ने कहा कि यह भगवान बिठल जी की मूर्ति रखी है। यह दूध का कटोरा रखा है। हमारे
सामने नामदेव दूध पिलाए तो मानेंगे अन्यथा आपको सपरिवार गाँव छोड़कर जाना होगा।
नामदेव जी ने कटोरा उठाया और भगवान बिठल जी की मूर्ति के सामने किया। उसी समय
कटोरा बिठल जी ने हाथों में पकड़ा और सब दूध पी गया। पंचायत के व्यक्ति तथा दर्शक
हैरान रह गए। इस प्रकार नामदेव जी की पूर्व जन्म की भक्ति की शक्ति से परमेश्वर ने
चमत्कार किए।

‘‘नामदेव जी की छान (झोंपड़ी की घास-फूस से बनी छत) भगवान ने डाली’’
अन्य अद्भुत चमत्कार :- नामदेव जी के पिता जी का देहान्त हो गया था। घर के सभी
कार्यों का बोझ नामदेव पर आ गया। माता ने कहा कि बेटा! बारिश होने वाली है। अगले
महीने से वर्षा प्रारम्भ हो जाएगी। उससे पहले-पहले अपनी झोंपड़ी की छान (घास-फूस की
छत) छा ले यानि डाल ले। जंगल से घास ले आ जो विशेष घास होता है। नामदेव घास

लेने गए थे। रास्ते में सत्संग हो रहा था। घास लाना भूल गया। सत्संग सुनने के लिए कुछ
देर बैठा, मस्त हो गया। आनन्द आया। फिर भण्डारे में सेवा करने लगा। इस प्रकार शाम
हो गई। बिना घास के लौटे तो माँ ने कहा कि बेटा घास नहीं लाया। छान बनानी थी। कहने
लगा कि माता जी! सत्संग सुनने लग गया। पता ही नहीं लगा कि कब शाम हो गई। कल
अवश्य लाऊँगा। अगले दिन सोचा कि कुछ देर सत्संग सुन लेता हूँ, फिर चलकर घास-फूस
लाकर छान (झोंपड़ी की छत) बनाऊँगा। उस दिन भी भूल गया।

अगले दिन सत्संग समाप्त
होते ही जंगल में गया तो पैर पर गंडासी (लोहे की घास-कांटेदार झाड़ी काटने की कुल्हाड़ी
जैसी) लगी। जख्म गहरा हो गया। घास नहीं ला सका। पैर से लंग करता हुआ खाली हाथ
चला आ रहा था। परमात्मा ने नामदेव के रूप में आकर घास लाकर झोंपड़ी बना दी और
नामदेव जी के आने से पहले चले गए। नामदेव जी को देखकर माता जी ने पूछा कि बेटा!
पैर में क्या लग गया? नामदेव जी ने कहा कि माता जी! झोंपड़ी की छान के लिए जंगल
में घास काट रहा था। पैर में गंडासी लग गई। माताजी! मैं घास उठाकर चलने में सक्षम
नहीं था। इसलिए पैर ठीक होने के पश्चात् घास लाकर छान बनाऊँगा। माता ने कहा कि
यह क्या कह रहे हो बेटा? अभी तो आप छान तैयार करके गए हो। तब नामदेव ने नई छान
देखी तो कहा कि परमात्मा आए थे और छान छाकर (डालकर) चले गए। माता जी को सब
भेद बताया तो आश्चर्य करने लगी कि वह कौन था? नामदेव जी ने कहा कि माता जी! वह
परमेश्वर थे।
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Wednesday, 18 March 2020

Many mysterious stories

Birth Story of Abraham Sultan "
 There was a fakir named Adham Shah.  He built a hut not far from the city of Balakh
 Was laid.  Used to visit the city.  One day he is the only one of the king of Balakh
 Looked at the daughter.  She was young and beautiful.  Adham Shah had a defect in his mind and
 Going to the king said that marry this girl to me.  The king was surprised.
 If the fakir does not give the shop somewhere, he is also scared.  Could not say yes or no suddenly, tomorrow
 Asked to come.  The ministers came to know.  There was an opinion that tomorrow he will tell him that the king
 To marry a girl one has to bring a necklace of pearls or bring a hundred pearls
 Huh.  Otherwise marriage does not happen.  The next day the fakir was told the condition.  Fakir pearl
 Went to pick up  Someone said that pearls are found in the sea.  Going to the sea
 Filled with sea water from Karmandal (Lotte), he started pouring it in the sand at some distance.  many days
 Even hungry and thirsty was engaged in this endeavor.  The body also came to an end.  Anyone who saw it said that the house was deserted for Allah.  Now preparing for hell.  sea
 Can never be empty.  Do devotion.  God appeared there in the form of alive Baba and
 Asked Adham Shah, what are you doing?  He told that marrying the king's girl
 is.  The condition of pearls is kept for him.  Pearls are told in the sea.  Sea pearl
 Will take it  Jinda said that the sea cannot be empty.  You die of hunger and thirst
 Will go  You have left home for the purpose of salvation.  Striving for salvation
 If you do, then some point should be made  You have planned to destroy life.  Adham Shah
 Said that I have no need for your education.  I am doing my work,
 You do your  God Kabir has said that:
 Do not die of disorder, as fire in the ground  When Karellai dhadakhan, there is no one left, Satguru Sharan.
 Joke: - A 70.75 year old man was standing on the road after drinking alcohol.

 The doga (stick for support) of his hand fell to the ground.  In lifting that dog
 Was unable because he would fall.  Then it would have been difficult to get up.  A gentleman
 Came by the way  The old man said to him in a stuttering voice, pick up my dog ​​and give it to me.
 It did not take long to understand the journey.  Said, O grandfather!  Look at your age.  this
 Drinking does not suit at age.  Have grandchildren.  What will be the effect on them?  this
 Hearing this, the old man said that without education, no one can do this till today
 Who would not have found a teacher?  If you want to raise a dog, do not lift it.  Same condition
 Adham Shah was of Fakir.  God saw that the devotee would die.  Went the sea,
 Thousands of pearls were lying in the sand.  Or saying Adham, Adham Shah tied thousands of pearls
 Took it and kept it in the king's court and said that as per your promise
 Marry the princess with me.  The ministers ordered the soldiers to beat it with sticks
 And kill and bring them to the forest.  This was done.  He died by the grace of God
 No.  Started walking in a few days.  The king's girl died a few days later.
 Pressing him into the tomb left four guards so that no wild animal spoiled the body
 Please do it.  Adham Shah came to know.  He went to the tomb at night.  Watchman sleep
 I slept in  Adham Shah digging the grave and removing the dead body, fixing the grave in the same way
 Carried the girl's body in her hut.  Banjara's convoy route on the same night
 After forgetting, he went to the same forest.  Deepak was burning in the hut.  Girl's body shroud
 Wrapped in the wall like a girl sitting on a palathi.  It was winter.
 Two men of the convoy went to the hut to take fire.  Adham Shah afraid of hearing his voice
 Gone that the king's men arrived.  He hid behind a hut in a cave in which
 He used to practice.  The convoy men supported the dead young girl against the wall
 When I sat and was afraid, I went back in the convoy and told.  A doctor also in the convoy
 Used to live  When many people and Vaidya went there, on seeing the girl, Vaidya said that this girl is not dead, she is shocked.  I can cure  The owner of the convoy said
 You treat.  If the girl is healthy, then she will ask who is your father or
 Where is the husband  First put the coverlet over the girl's naked body.  Vaidya then vein in hand
 Made an unclean blood by making an incision.  The girl became alert within a few minutes.  I said
 How I came here  Adham Shah Fakir saw in the light of the lamp that this king's man
 Are not.  Shehzadi has also come alive.  He came to the convoy and all
 The girl who told the story also listened.  The convoy was explained to the girl that if
 If you did not bring this fakir out of the grave, you would have left the world.  Now
 You need to live with this Faqir as the King of Allah.  The girl said yes.
 Both of them married, read Nikah.  The convoy owner said
 That if you want to walk with us, we will serve you, do not let any trouble happen.SAnews.org
 The fakir became a householder and said that we have to stay here.  I never forget your favor
 Will be able to  You have come as a form of Allah for me.  Both of us were to die.
 You have protected our lives.  The people of the convoy left them there.  some
 The day after, the girl gave birth to a beautiful son.  He was named "Ibrahim".  Four
 After being a child of the year, he got admission for reading near the cleric of the city of Balakh.
 Every day the half-born son would leave the cleric in the morning and bring it in the evening.  one day
 The king of Balakh went to that cleric.  He used to reward the students.  Poor children
 Used to distribute clothes to  The king was surprised to see Adham Shah Fakir's boy.  Her
 Surat used to meet the dead girl of the king.  The king asked the cleric whose child was this
 is?  Maulvi told that a fakir comes from the forest, he has a child.  Except morning
 Goes, takes it in the evening.  We did not inquire more.  The boy also got up from the king
 cuddled up.  The king picked him up in his lap and started walking.  Told the cleric that its
 If the father comes, send him to the palace, he will take it from there.  The king showed the child to the queen,
 On seeing her, she fainted after remembering her daughter and fell on the earth.  Conscious
 When it was done, he put the child on his chest.  Food is made by making kheer-pudding yourself  The queen said
 That this is the appearance of his girl.  So the fakir went to the cleric
 Went to the king's palace.  The king told the servants that this boy's father
 If he does not come, stop him, bring him to the palace with respect.  Seeing the same fakir
 The king said, whose child is this?  The fakir told that this is my boy.  your
 The girl is born from.  The king said that it is not right to lie with a mystic.
 The fakir told the whole story.  The king could not believe it.  The servants took the fakir along
 With the first girl's grave dug, there was no dead body.  Visited the Fakir's hut.  Their
 The girl was dressed in worn and bandaged clothes from many places.  See your parents
 Runs from father to mother and turns from chest to chest.  The girl and the fakir came to the palace with their orders and the child.  Appointed Adham as his successor.
 Which is why Shah came to be called.  His name was 'Adham'.  Adham Shah after staying for a few days
 Did not like royalty.  He leaves her in love with her and walks into the hut
 Sometimes he would meet the boy and wife.  After a few years, Adham Shah Fakir
 Death occurred.  Made her tomb in the hut.  Beautiful gardens were built nearby.  there
 Fairs started.  Child Ibrahim Nana ji was made the successor of the state.
 Terms to consider: - For devotion, the body nature of the devotee is very supportive.
 Due to birth from good parents, the nature of the parents also remains in the child's body.
 is.  Ibrahim was born in which Samman was Maniyar.  He sacrificed his boy's sacrifice
 Was given for service.  Some reason was created by you in the beginning of Sultan's realization
 Read.  Parmeshwar ji i.e. Satguru Kabir ji had raised that boy alive.  Same summons
 Then became king.  Did not do devotion.  This time, gave that soul a body from a father who
 Was dedicated to the divine from birth.  To save salvation to the soul of summons, God
 Inspired the marriage in Adham Shah.  Shock to the girl, pearls from the sea, banjaras
 Forget the convoy route and come to the hut, make the girl alive.  Birth of ibrahim
 Being a Pak soul girl from Adham Shah who lives a sadhvi life by living with a fakir
 Was living  High views were made.  The girl had not felt any evil in the world.  Satguru's
 Sacrificed his son Seu (Shiva) and donated treasures in the form of Naushekhan i.e.
 Billions of rupees.  The fruit of that donation was also to be given to that creature.  God Kabir for him
 Ji did this Leela.  Adam Shah Fakir's grandfather was the king of the same city of Balakh.
 Whose kingdom was taken away by the father of Abraham's maternal grandfather.  Then the same state
 Abraham of the same dynasty received.  Adam Shah also deviated from devotion due to animal vagina
 Was born in  God Kabir has said that: -
 We did all these games.  We met those who live determinedly.
 I am a slave of the person who is my refuge.  Gail Gail Lagya Firu, Till Earth Earth.

Monday, 16 March 2020

How will there be a Satyayug in Kalyug?


 Presently from 1997 to 3000 AD, again the atmosphere like Satyayug, mutual love
 An atmosphere will be formed.  Fruitful trees and shady trees will be planted again.  Factories smoke
 Will be devoid of.  Then you will stop.  People will wear handmade clothes.  Clay or steel utensils
 Experiments that will be made from human powered devices in small factories

 Will walk like a draw.  Livestock will grow.  All human beings make the whole earth fertile
 I will work in unison.  No rich person will be egoistic.  He donated more money
 Will give in  Whoever collects more money will be called a fool.  By giving him knowledge
 He will be encouraged to lead a normal life which he will accept.  Live a normal life
 Those who do charity and devotion will be praised.  Western countries (America,
 England, etc.) will cease to be civilization.  Men and women will wear full clothes.
 Will live a happy life  Will help each other like his family.  In kalyuga
 The golden age will last for a thousand years.  Its 50 effects for 2 lakh years and 30 effects
 Will remain for one lakh thirty thousand years.
 In the 95500 (ninety five thousand five hundred) years of the end, 95 people were ungrateful, unarmed,
 You will become evil  Will start eating raw meat.  Age will be very short i.e. 20 years.  human
 The length will be 2 to 3 feet.  5 year old girl will have a child.  80 person
 Will die at the age of 15.  Then rain and water are on the earth
 Will go.  The good person will survive 5, the rest will kill Kalki (unintelligible) avatar,
 Some will die in the flood.  The remaining people will live in high places.  Hundred on earth
 There will be water up to feet.  The water will dry slowly.  Trees (forests) will grow on the earth.  Then land
 Will be fertile.  At the end of the Kali Yuga, the fertile part of the earth should reach 3 feet below.
 Will go.  Due to water, that poison will come out of the earth over water.  Earth again
 It will be fertile and Satyayug will begin again.

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Friday, 13 March 2020

Fondness,,

The simple meaning of "part of the spirit"
 Summary: - Pativartha is a woman who other than her husband
 Do not want a man with a husband.  If someone is beautiful, handsome, even rich, towards him
 Don't get dirty thoughts.  Even if some god is also standing.  Don't see him as a god
 Husband should not make sense.  Be respectful to everyone, but do not commit adultery
 It is called a poem.
 In the part of this virtue, the soul's husband is Parbrahma, that is, transcend all Brahmins (lords).
 That which is full Brahma is Parbrahma in the language of saints, which is supreme in Gita chapter 8 verse 3.
 Akshar is called Brahma and in verse 8 of verse 8, in which he asked to do devotion
 is.  In the Gita chapter 18 verses 61.62 and 66, who is asked to take shelter. 

That ultimate
 Do devotion with utterance like a virtue in the letter Brahma.  Reverence to any other God
 I do not worship  If everyone is respected, that devout soul is said to be loving.  Geeta chapter
 In verse 10, it is said that do my devotion to devotion.  Similarly, subtle Vedas

 God has given his beloved soul to Saint Garibdas by Kabir, in the same scripture
 It has been explained in the part of this kindness that: -
  Voice no.  18: -
 The poor, of the stage of the husband's pivot, the head is ashes.
 The husband of Patibrata is Parbrahm, the Satguru spoke.
  Bhavartha: - The husband of pativrata is Parbrahma i.e. the lord of devout soul is Parbrahma.  this
 Satguru (God Kabir, the Satguru of Sant Garibdas ji) has explained by Sakhi
 That is, Satguru is a witness.  Pityavrata Raja (dust) of the feet of her Peeva (husband = God)
 Take it and keep it on your head, that is, only consider the Satpurush as your own. (18)
  Voice no.  14: -
 Poor, patibrata affair Suni, Jaka Jansen Neh.  My husband is not chandai, Koti mille j dev. 14.
  Bhavartha: - Pativrata hears the glory of the one who is her beloved husband.  He his lord
 Does not leave the God, even if a god comes and stands.  Saint Garibdas Ji of the world
 Along with the behavior, the behavior of the devotee is explained in devotion. (14)
  Voice no.  1: -

 Know the poor, husband and wife.  AK mana AK this, chhandai bhagati na bhava.
  Meaning: - Believe that one who is devoted to God except his God
 That is, do not worship in the form of faith.  May his mind be towards his God and devotion
 Do not leave. (1)
  Voice no.  23: -
 Poor, husband did not miss, Dhar Ambar Dhaskant.  Sant na chande santha, kotik milay asant. 23.

  Meaning: - Whether Dhar (earth) and Amber (sky) are destroyed.  So much
 Even in objection, the firm devotee does not waver.  Similarly, saint
 The devoted seeker on God) does not give up his saintliness (saintly nature), whether
 Meet him crores of infinite (atheists or worshipers of other gods) and they say that
 Are you worshiping wrong Ishta or say what is kept in devotion?  Ideas
 The devotee does not give up his saintliness after listening to the devotees (dissidents). (23)
  Voice no.  24: -
 Poor, unhappy husband, Sakhi Chander Sur.  Know the fields, climb the cow to the sun.
  Bhavartha: - If he is really a firm devotee (loving soul) then he can never do his religious work
 I will not let you have a mistake in decency.  Witnesses of this (moon = davvad) and sur
 (Suraj = Nainad).  It is the sense that just as the sun and moon do not change their speed,
 A firm devotee is also steadfast in faith.  He will be tested when someone
 Objection comes  For example, the coward and the knight are tested on the battlefield. (24)
  Voice no.  10: -
 Know the poor, loving husband, go without heart.  Charan bin, three lok nahind thor of his pee .. 10.
  Meaning: - Pativrata, that is, worshiper of a God, know him in whose heart the other
 Do not have reverence.  May his soul believe that in addition to the feet of my God husband
 There is no where in three worlds.
(10)
 Described the strong devotees, that have become pativrata souls: -
  Voice no.  28: -
 Poor, unhappy husband, did not miss his mind.  Moradhwaj Arpan did, head sat Jagdish .. 28.
  Bhavartha: - King Moradhwaj was a devotee like husband.  He called his boy Tamradhwaj
 The head was cut at the behest of Shri Krishna ji present in the form of a sage, ie from Aare (Karunt)
 Body ripped off.  For divine husband, Moradhwaj soul also cut off his son
 Dedicated.  In this way, if the body-mind-head of the soul of God is for God
 If you do not miss that opportunity, that is, do not let go by hand.  To such a devotee,
 All have to be sacrificed for God.  He is a true devotee. (28)
  Voice no.  29.30: -
 Poor, patibrata is Prahlada, so is patibrata.  Eighty-four difficult tirasana, pasted on the head.
 Poor, not Ram Naam Chandya, Abigat Agam Agadh.  Dav na chukya choupate, patibrata prahlada .. 30.

Thursday, 12 March 2020

Story of Dhanna Bhagat's life

Kankar was born in Dhanna Bhakta's field "
 There was a Jat caste devotee named Dhanna in Rajasthan province.  It rained in the village.  All
 The villagers took seeds of jowar and went to their respective fields to sow.  Devotee Dhanna Jat
 He also started sowing in the field with jowar seeds. 
 Four sadhus were coming on the way.  Hermit
 Seeing the bull stopped.  stood up.  Rama-Rama's, touched the feet of the sages.  Sages
 Told that devotee!  Nothing has been eaten for two days.  Pran is about to leave.  Rich devotee
 Said that this is the tide of seeds.  You eat it to calm your hunger.  Hungry sages
 The sorghum was wrapped on the seeds.  Everyone ate the tide.  Thanked the devotee and left
 went.  Dhanna Bhakta's wife was of a warm nature.  The devotee thought that his wife knew
 If it goes, it will fight.  So, collect the kankar and put it in a bag in which the jowar
 Was laid.  The devotee gave kankar seed in place of jowar.  It seemed as if the tide was seeding
 Ho.  Dhanna ji also came home with all the farmers.  After two months of all farmers
 In the fields, sorghum rose and in the field of Dhanna ji, Tumbe vine grew in great quantity and
 Felt thick.  The field was filled with tombs.  The neighbor ranch told Dhanna's wife
 Did you not sow the tide in the field?  Tumblings grow in your field?  Countless
 They are thick.  Dhanna's wife went to the farm.  Went and saw that the tide in everyone's fields
 It had risen, but it had wilted due to no rain.  Tumbl vine in Dhanna's field
 There was an excessive amount of Ugi.  Tumbe was also very fat.  Dhanna ji's wife did a tumba
 Broke and put it on the head and walked towards the house.  
Some devotees were sitting near Dhanna.
 Dhanna ji saw that Bhaktamati Tumba was coming.  She went to the farm.  Told the devotees that
 You go soon  They walked away.  Bhaktamati came and hit the head of Tumba devotee and
 She said that the children will eat you.  Where did the seed go?  Dhanna ji did not say anything.  Of your head
 Rescued. 
  Tumba was split into two as soon as it hit the earth.  Clean as a seed from inside
 A thick tide came out.  Dhanna's wife was surprised.  Glad to see the tide
 Hui.  Thought that there might be tides in other tombas as well.  Take that devotee with him
 Wali reached the field keeping the tide at home.  After laying the sheet, you started breaking.  Cash
 (Five-five kilos) Jowar came out of one tumbe.  It was a lot
 The crop of other farmers dried up due to no rain.  Not a single pimple was involved.
 Dhanna Bhakta distributed about ten or ten quintals of sorghum to all the villagers.
 Granted.  His children were also hungry.  
Their houses also carried the remaining tide.  The wife also went on devotion.
 Both were saved.  Speech number  The simple meaning of 110 is that Dhanna devotee's divine
 In me and in religious work, there was such a tune (passion) that donated only the seeds of jowar.  To give
 Every country is  For this reason, God defeated the dry field in which Kankar was sown.
 That dry field (kshetra) was made green with the vines of the tomb. (110)

Wednesday, 11 March 2020

एक राजा के जीवन काल की कथा

पीपा राजा का वैराग्य’’
कथा :- राजस्थान में गीगनौर नामक शहर में राजपूत राजा पीपा ठाकुर राज्य करता
था। (गीगनौर का वर्तमान नाम नागौर है।) उसकी तीन रानियाँ थी। पटरानी (मुख्य पत्नी)
का नाम सीता था। काशी नगर (उत्तर प्रदेश) में आचार्य रामानंद जी रहते थे। वे कबीर
परमेश्वर जी की लीला तथा यथार्थ ज्ञान जानकर उनसे प्राप्त ज्ञान का प्रचार किया करते
थे। मण्डली बनाकर चलते थे।
एक बार स्वामी रामानंद जी गीगनौर शहर में चले गए। राजा को पता चला कि स्वामी
रामानंद आचार्य जी आए हैं। उनका नाम बहुत प्रसिद्ध था। राजा पीपा जी देवी दुर्गा के
परम भक्त थे। माता को ही सर्वोच्च शक्ति मानते थे। राज्य में सुख माता जी के आशीर्वाद
से ही मानते थे। राजा को पता चला कि स्वामी रामानंद जी माता दुर्गा से ऊपर परमात्मा
बताते हैं और कहते हैं कि माता दुर्गा की शक्ति से जन्म-मरण तथा चौरासी लाख प्राणियों
के शरीरों में कष्ट उठाना समाप्त नहीं हो सकता। राजा को यह सुनकर अच्छा नहीं लगा।
राजा ने स्वामी जी को अपने घर बुलाकर पूछा कि आप कहते हो कि दुर्गा देवी जी से ऊपर
अन्य परम प्रभु है। माता की पूजा से जन्म-मरण, चौरासी लाख प्रकार के प्राणियों में भ्रमण
सदा बना रहेगा। जन्म-मरण तथा चौरासी लाख प्रकार की योनियों वाला कष्ट पूर्ण परमात्मा
की भक्ति के बिना समाप्त नहीं हो सकता। राजा ने बताया कि मैं प्रत्येक अमावस्या को माता
का जागरण करवाता हूँ,

भण्डारा करता हूँ। माता मुझे प्रत्यक्ष दर्शन देती है। मुझसे बातें
करती है। स्वामी रामानंद जी ने कहा कि आप माता से ही स्पष्ट कर लेना। हम छः महीने

के पश्चात् फिर इस ओर आऐंगे, तब आप से भी मिलेंगे। स्वामी जी चले गए। अगली
अमावस्या को राजा ने जागरण कराया। माता ने दर्शन दिए। राजा ने प्रश्न किया कि हे
माता! आप मेरा जन्म-मरण तथा चौरासी लाख प्राणियों के शरीरों में कष्ट उठाना समाप्त
कर दें। श्री देवी दुर्गा जी ने कहा कि राजन! तेरे राज्य में सुख माँग ले। राज्य विस्तार माँग
ले। वह सब कर दूँगी, परंतु जन्म-मरण तथा चौरासी लाख वाला कष्ट समाप्त करना मेरे
बस से बाहर है। यह कहकर माता अंतर्ध्यान हो गई। राजा पीपा ठाकुर बेचैन हो गया कि
यदि जन्म-मरण समाप्त नहीं हुआ तो भक्ति का क्या लाभ? स्वामी जी कब आऐंगे? छः
महीने तो बहुत लंबा समय है

ीपा हाथी पर सवार होकर स्वामी रामानन्द से मिलने के लिए काशी उनके आश्रम
में गया था। द्वारपाल से कहा था कि स्वामी जी से कहो, पीपा राजा मिलने आया है। स्वामी
जी ने कहा कि मैं राजाओं से नहीं मिलता, भक्त-दासों से मिलता हूँ। राजा को जवाब मिला
तो उसी समय हाथी, सोने का मुकुट आदि बेचकर आश्रम आया और कहा कि एक पापी
दास गीगनौर से स्वामी जी से मिलने आया है। स्वामी जी बड़े प्रसन्न हुए। पीपा ने कहा
था कि मैं अब आपके पास ही जीवन बिताऊँगा। स्वामी जी ने कहा कि आप अपने घर
जाओ, मैं शीघ्र आऊँगा। घर से आपको ठीक से वैरागी बनाकर लाऊँगा। स्वामी जी को पता
था कि कुछ दिन बाद रानी आएगी। यहाँ पर हाहाकार मचाएगी। इसलिए उनके सामने ही
सन्यास देना उचित समझा था। स्वामी रामानंद जी एक महीने के पश्चात् ही आ गए। राजा
पीपा ने स्वामी जी को गुरू धारण किया। राज्य त्यागकर उनके साथ काशी चलने का आग्रह
किया। राजा के साथ तीनों रानियों ने भी घर त्यागकर सन्यास लेने को कहा। राजा को चिंता
हुई।
गुरू जी को बताया कि ये अब तो उमंग में भरी हैं, परंतु रूखा-सूखा खाना, धरती पर
सोना, अन्य समस्याओ को झेल न सकेंगी। मेरी भक्ति में भी बाधा करेंगी। स्वामी रामानंद
ने कहा कि मैं इस समस्या का समाधान करता हूँ। स्वामी जी ने कहा कि तीनों रानी
अपने-अपने गहने घर पर छोड़कर चलें। सीता ने तो अपने आभूषण त्याग दिये। दो ने कहा
कि हम आभूषण नहीं त्याग सकती। राजा ने कहा कि सीता भी तो बाधा बनेगी। स्वामी जी
ने कहा कि सीता! आपको निःवस्त्रा (नंगी) होकर हमारे साथ रहना होगा। सीता ने कहा,
स्वामी जी! अभी वस्त्रा उतार देती हूँ। यह कहकर कपड़ों के बटन खोलने लगी। स्वामी
रामानंद जी ने कहा कि बेटी बस कर। ये तेरी परीक्षा थी, तू सफल हुई। स्वामी जी ने कहा
कि पीपा जी! आप सीता को साथ ले लो। यह आपकी साधना में कोई बाधा नहीं करेगी।
उपरोक्त विधि से पीपा जी तथा सीता जी को साथ लाए थे। दोनों ने काशी में रहकर भक्ति
की। जैसा मिला, खाया। जैसा वस्त्रा मिला, पहना और श्रद्धा से भक्ति करने लगे।
‘‘पीपा-सीता सात दिन दरिया में रहे और फिर बाहर आए’’
भक्त पीपा और सीता सत्संग में सुना करते कि भगवान श्री कृष्ण जी की द्वारिका
नगरी समन्दर में समा गई थी। सब महल भी समुद्र में आज भी विद्यमान हैं। बड़ी सुंदर
नगरी थी। भगवान श्री कृष्ण जी के स्वर्ग जाने के कुछ समय उपरांत समुद्र ने उस पवित्रा
नगरी को अपने अंदर समा लिया था। एक दिन पीपा तथा सीता जी गंगा दरिया के किनारे
काशी से लगभग चार-पाँच किमी. दूर चले गए। वहाँ एक द्वारिका नाम का आश्रम था।
आश्रम से कुछ दूर एक वृक्ष के नीचे एक पाली बैठा था। उसके पास उसी वृक्ष के नीचे
बैठकर दोनों चर्चा करने लगे कि भगवान कृष्ण जी की द्वारिका जल में है। पानी के अंदर
है। पता नहीं कहाँ पर है? कोई सही स्थान बता दे तो हम भगवान के दर्शन कर लें। पाली
ने सब बातें सुनी और बोला कौन-सी नगरी की बातें कर रहे हो? उन्होंने कहा कि द्वारिका
की। पाली ने कहा वह सामने द्वारिका आश्रम है। पीपा-सीता ने कहा, यह नहीं, जिसमें
भगवान कृष्ण जी तथा उनकी पत्नी व ग्याल-गोपियाँ रहती थी। पाली ने कहा, अरे! वह

नगरी तो इसी दरिया के जल में है। यहाँ से 100 फुट आगे जाओ। वहाँ नीचे जल में द्वारिका
नगरी है। संत भोले तथा विश्वासी होते हैं। स्वामी रामानंद जी प्रचार के लिए 15 दिन के
लिए आश्रम से बाहर गए थे। दोनों पीपा तथा सीता ने विचार किया कि जब तक गुरू जी
प्रचार से लौटेंगे, तब तक हम भगवान की द्वारिका देख आते हैं। दोनों की एक राय बन गई।
उठकर उस स्थान पर जाकर दरिया में छलाँग लगा दी। आसपास खेतों में किसान काम
कर रहे थे। उन्होंने देखा कि दो स्त्रा-पुरूष दरिया में कूद गए हैं। आत्महत्या कर ली है।
सब दौड़कर दरिया के किनारे आए। पाली से पूछा कि क्या कारण हुआ? ये दोनों मर गए,
आत्महत्या क्यों कर ली? पाली ने सब बात बताई। कहा कि मैंने तो मजाक किया था कि
दरिया के अंदर भगवान की द्वारिका नगरी है। इन्होंने दरिया में द्वारिका देखने के लिए प्रवेश
ही कर दिया। छलांग लगा दी। बड़ी आयु के व्यक्तियों ने कहा कि आपने गलत किया,
आपको पाप लगेगा। भक्त तो बहुत सीधे-साधे होते हैं। सब अपने-अपने काम में लग गए।
यह बात आसपास गाँव तथा काशी में आग की तरह फैल गई। काशी के व्यक्ति जानते थे
कि वे राजा-रानी थे, मर गए। परमात्मा ने भक्तों का शुद्ध हृदय देखकर उस दरिया में
द्वारिका की रचना कर दी। श्री कृष्ण तथा रूकमणि आदि-आदि सब रानियाँ, ग्वाल, बाल
गोपियाँ सब उपस्थित थे। भगवान श्री कृष्ण रूप में विद्यमान थे। सात दिन तक दोनों
द्वारिका में रहे। चलते समय श्री कृष्ण रूप में विराजमान परमात्मा ने अपनी ऊँगली से
अपनी अंगूठी (छाप) निकालकर भक्त पीपा जी की ऊँगली में डाल दी जिस पर कृष्ण लिखा
था। सातवें दिन उसी समय दिन के लगभग 11रू00 बजे दरिया से उसी स्थान से निकले।
कपड़े सूखे थे। दोनों दरिया किनारे खड़े होकर चर्चा करने लगे कि अब कई दिन यहाँ दिल
नहीं लगेगा। खेतों में कार्य कर रहे किसानों ने देखा कि ये तो वही भक्त-भक्तनी हैं जिन्होंने
दरिया में छलाँग लगाई थी। आसपास के वे ही किसान फिर से उनके पास दौड़े-दौड़े आए
और कहने लगे कि आप तो दरिया में डूब गए थे। जिन्दा कैसे बचे हो? सातवें दिन बाहर
आए हो, कैसे जीवित रहे? दोनों ने बताया कि हम भगवान श्री कृष्ण जी के पास द्वारिका
में रहे थे। उनके साथ खाना खाया। रूकमणि जी ने अपने हाथ से खाना बनाकर खिलाया।
वे बहुत अच्छी हैं। भगवान श्री कृष्ण भी बहुत अच्छे हैं। देखो! भगवान ने छाप (अंगूठी) दी
है। इस पर उनका नाम लिखा है। यह सब बातें सुनकर सब आश्चर्य कर रहे थे। यह बात
भी आसपास के क्षेत्रा तथा काशी में फैल गई। सब उनको देखने तथा भगवान द्वारा दी गई
छाप को देखने, उसको मस्तिक से लगाने आने लगे। स्वामी रामानन्द जी के आश्रम में
मेला-सा लग गया। स्वामी जी भी उसी दिन प्रचार से लौटे थे। उन्होंने यह समाचार सुना
तो हैरान थे। छाप देखकर तो सब कोई विश्वास करता था। वैसी छाप (अंगूठी) पृथ्वी पर
नहीं थी। उस अंगूठी को एक पुराने श्री विष्णु के मंदिर में रखा गया। कुछ साधु कहते हैं
कि वह अंगूठी वर्तमान में भी उस मंदिर में रखी है। वाणी नं. 109 का यही सरलार्थ है कि
पीपा जी को परचा (परिचय अर्थात् चमत्कार) हुआ। भगवान तथा भक्त मिले, आपस में चर्चा
हुई। सीता सुधि (सीता सहित) साबुत (सुरक्षित) रहे। द्वारामति (द्वारिका नगरी) निधान
यानि वास्तव में अर्थात् यह बात सत्य है।

Monday, 9 March 2020

Why make holi

Holi festival: -
   As soon as we hear this, some animations start playing in our hearts and minds like Abir Gulal shattering all around, people singing in the streets, colorful faces, colorful fountains emanating from the watergun, dances of youngsters  on filmy songs.  
  Do you know why the festival of Holi is celebrated? Let us give some brief details about this subject.
   As the legends tell us, Prahlada, son of an autocratic king Hiranyakashyap, has a legend of protection by his hari as a result of his devotion, in which the name Holika is decribed  about whom we almosty know that is Prahlada's aunt . The one who tried to kill Prahlada as according  to  his brother, but Prahlada was a Hari devotee whom Hari had protected.
    So we get to know from this story that one who devoted himself to  supreme power by believing in God and follow the path of truth, then that supreme power protects him, we should also search for that supreme power who had protected the  Prahlada. 
 Instead of  promoting the evils that are taking place in our society today year after year in the name of Holi in our society such as: intoxication, dancing on DJ, singing indecent  Coloring each other  etc ..
 We have to know the real meaning of Holi, only then we will be able to play the real Holi.

 Holi literally means happiness and we can be happy only when our God is happy with us. We have to persuade God.
 So for that we should play Holi named Ram, whose color never fades, but it gets darker day by day, that is, faith in God increases.
  
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Kalyug mein satyug

कलयुग में सत्ययुग
विशेष :- वर्तमान में (सन् 1997 से) कलयुग की बिचली पीढ़ी चल रही है यानि
कलयुग का दूसरा (मध्य वाला) चरण चल रहा है। इस समय कलयुग 5505 वर्ष बीत चुका
है। कुछ वर्षों में परमेश्वर कबीर जी के ज्ञान का डंका सर्व संसार में बजेगा यानि कबीर जी
के ज्ञान का बोलबाला होगा, खरबों जीव सतलोक जाएंगे। यह भक्ति युग एक हजार वर्ष
तक तो निर्बाध चलेगा, उसके पश्चात् दो लाख वर्ष तक भक्ति में 50 प्रतिशत आस्था
व्यक्तियों में रहेगी, भक्ति मंत्रा यही रहेंगे। फिर एक लाख तीस हजार (130000) वर्ष तक
तीस प्रतिशत व्यक्तियों में भक्ति की लगन रहेगी। यहाँ तक यानि
(5500़1000़200000़130000त्र336500 वर्ष) तीन लाख छत्तीस हजार पाँच सौ वर्ष तक
कलयुग का दूसरा चरण चलेगा। इसके पश्चात् कलयुग का अंतिम चरण चलेगा। पाँच सौ
(500) वर्षों में भक्ति चाहने वाले व्यक्ति मात्रा 5ः रह जाएंगे। तीसरे चरण का समय पचानवे
हजार पाँच सौ (95500) वर्ष रह जाएगा। फिर भक्ति चाहने वाले तो होगें, परंतु यथार्थ
भक्तिविधि समाप्त हो जाएगी। जो व्यक्ति हजार वर्ष वाले समय में तीनों मंत्रा लेकर पार नहीं
हो पाएंगे। वे ही 50ः तथा 30ः, 5ः, उस समय की जनसँख्या में भक्ति चाहने वाले
रहेंगे। वे पार नहीं हो पाते, परंतु उनकी भक्ति (तीनों मंत्रों) की कमाई अत्यधिक हो जाती
है। वे सँख्या में अरबों होते हैं। वे ही सत्ययुग, त्रोतायुग, द्वापरयुग में ऋषि-महर्षि, प्रसिद्ध
सिद्ध तथा देवताओं की पदवी प्राप्त करते हैं। उनका भक्ति कर्मों के अनुसार सत्ययुग में
जन्म होता है। वे भक्ति ब्रह्म तक की करते हैं, परंतु सिद्धियाँ गजब की होती हैं। वे पूर्व जन्म
की भक्ति की शक्ति से होती हैं। कलयुग में वे ही ब्राह्मण-ऋषि उन्हीं वेदों को पढ़ते हैं। ब्रह्म
की भक्ति ओउम् (¬) नाम जाप करके करते हैं, परंतु कुछ भी चमत्कार नहीं होते। कारण
है कि वे तीनों युगों में अपनी पूर्व जन्म की भक्ति शक्ति को शॉप-आशीर्वाद देकर सिद्धियों
का प्रदर्शन करके समाप्त करके सामान्य प्राणी रह जाते हैं, परंतु उनमें परमात्मा की भक्ति
की चाह विद्यमान रहती है। कलयुग में काल सतर्क हो जाता है। वेदविरूद्ध ज्ञान का प्रचार
करवाता है। अन्य देवताओं की भक्ति में आस्था दृढ़ करा देता है। जैसे 1997 से 2505 वर्ष
पूर्व (यानि ईशा मसीह से 508 वर्ष पूर्व) आदि शंकराचार्य जी का जन्म हुआ था। उन्होंने 20
वर्ष की आयु में अपना मत दृढ़ कर दिया कि श्री ब्रह्मा, श्री विष्णु तथा श्री शिव जी, माता
दुर्गा तथा गणेश आदि-आदि की भक्ति करो। विशेषकर तम् गुण भगवान शिव की भक्ति को
अधिक दृढ़ किया क्योंकि वे {आदि शंकराचार्य जी (शिवलोक से आए थे)} शिव जी के गण
थे। इसलिए शंकर जी के मार्ग के आचार्य यानि गुरू (शंकराचार्य) कहलाए। वर्तमान तक
राम, कृष्ण, विष्णु, शिव तथा अन्य देवी-देवताओं की भक्ति का रंग चढ़ा है। संसार में अरबों
मानव भक्ति चाहने वाले हैं। वे किसी न किसी धर्म या पंथ से गुरू से जुड़े हैं। परंतु भक्ति
शास्त्राविरूद्ध कर रहे हैं। परमेश्वर वि.संवत् 1575 (सन् 1518) तक 120 वर्ष में गुरू पद
पर एक सौ पन्द्रह (115) वर्ष रहकर 64 लाख (चौंसठ लाख) भक्तों में भक्ति की प्रेरणा को
फिर जागृत किया। उनमें पुनः भक्ति बीज बोया। फिर सबकी परीक्षा ली। वे असफल रहे,
परंतु गुरू द्रोही नहीं हुए। उनका अब जन्म हो रहा है। सर्वप्रथम वे चौंसठ लाख मेरे (संत
रामपाल दास) से जुड़ेंगे। उसके पश्चात् वे जन्मेंगे जिन्होंने एक हजार वर्ष के पश्चात् 2
लाख तथा 1 लाख 30 हजार वर्ष तक भक्ति में लगे रहे, परंतु पार नहीं हुए। जो चौंसठ
लाख हैं, ये वे प्राणी हैं जो एक हजार वर्ष वाले समय में रह गए थे, परंतु धर्मराज के दरबार
में अधिक विलाप किया कि हमने तो सतलोक जाना है। परमात्मा कबीर जी गुरू रूप में
प्रकट होकर उनको धर्मराज से छुड़वाकर मीनी सतलोक में ले गए थे। उनका जन्म अपने
आने के (कलयुग में वि.संवत् 1455 के) समय के आसपास दिया था जो अभी तक मानव
जीवन प्राप्त करते आ रहे हैं।

Saturday, 7 March 2020

पवित्रता का अंग


सारांश :- पतिव्रता उस स्त्रा को कहते हैं जो अपने पति के अतिरिक्त अन्य किसी
पुरूष को पति भाव से न चाहे। यदि कोई सुंदर-सुडोल, धनी भी क्यों न हो, उसके प्रति
मलीन विचार न आऐं। भले ही कोई देवता भी आ खड़ा हो। उसको देव रूप में देखे न कि
पति भाव यानि प्रेमी भाव न बनाए। सत्कार सबका करें, परंतु व्याभिचार न करे, वह पतिव्रता
स्त्रा कही जाती है।
इस पतिव्रता के अंग में आत्मा का पति पारब्रह्म है यानि सब ब्रह्मों (प्रभुओं) से पार
जो पूर्ण ब्रह्म है, वह संतों की भाषा में पारब्रह्म है जिसे गीता अध्याय 8 श्लोक 3 में परम
अक्षर ब्रह्म कहा है तथा अध्याय 8 के ही श्लोक 8ए 9ए 10 में जिसकी भक्ति करने को कहा
है। गीता अध्याय 18 श्लोक 61.62 तथा 66 में जिसकी शरण में जाने को कहा है। उस परम
अक्षर ब्रह्म में पतिव्रता की तरह भाव रखकर भक्ति करे। अन्य किसी भी प्रभु को ईष्ट रूप
में न पूजे। सम्मान सबका करे तो वह भक्त आत्मा पतिव्रता कही जाती है। गीता अध्याय
13 श्लोक 10 में कहा है कि मेरी अव्यभिचारिणी भक्ति कर। इसी प्रकार सुक्ष्म वेद जो
परमेश्वर कबीर जी द्वारा अपनी प्रिय आत्मा संत गरीबदास को दिया है, इसी सतग्रन्थ में
इस पतिव्रता के अंग में स्पष्ट किया है कि :-
 वाणी नं. 18 :-
गरीब, पतिब्रता पीव के चरण की, सिर पर रज लै राख।
पतिब्रता का पति पारब्रह्म है,सतगुरु बोले साख।।18।।
 भावार्थ :- पतिव्रता का पति पारब्रह्म है यानि भक्त आत्मा का स्वामी पारब्रह्म है। यह
सतगुरू (संत गरीबदास जी के सतगुरू परमेश्वर कबीर जी हैं) ने साखी द्वारा समझाया है
यानि सतगुरू साक्षी हैं। पतिव्रता अपने पीव (पति = परमेश्वर) के चरणों की रज (धूल)
लेकर सिर पर रखें अर्थात् केवल सतपुरूष को अपना मानें।(18)
 वाणी नं. 14 :-
गरीब, पतिब्रता प्रसंग सुनि, जाका जासैं नेह। अपना पति छांड़ै नहीं, कोटि मिले जे देव।।14।।
 भावार्थ :- पतिव्रता उसी की महिमा सुनती है जो उसका प्रिय पति है। वह अपने प्रभु
को नहीं छोड़ती चाहे कोई देवता आकर खड़ा हो जाए। संत गरीबदास जी ने संसार के
बर्ताव के साथ-साथ भक्ति में भक्त के बर्ताव को समझाया है।(14)
 वाणी नं. 1 :-
गरीब, पतिब्रता तिन जानिये, नाहीं आन उपाव। एके मन एके दिसा, छांडै़ भगति न भाव।।1।।
 भावार्थ :- पतिव्रता उसे मानो जो अपने ईष्ट को छोड़कर किसी अन्य प्रभु की उपाव
यानि उपासना ईष्ट रूप में न करे। उसका मन एक अपने ईष्ट की ओर रहे और भक्ति भाव
न छोड़े।(1)
 वाणी नं. 23 :-
गरीब, पतिब्रता चूके नहीं, धर अंबर धसकंत। संत न छांड़े संतता, कोटिक मिलैं असंत।।23।।

 भावार्थ :- चाहे धर (धरती) तथा अम्बर (आकाश) धसके यानि नष्ट हो जाऐं। इतनी
आपत्ति में भी दृढ़ भक्त (पतिव्रता आत्मा) डगमग नहीं होता। इसी प्रकार संत (सत्य भाव
से भगवान पर समर्पित साधक) अपनी सन्तता (साधु वाला स्वभाव) नहीं छोड़ता, चाहे
उसको करोड़ों असन्त (नास्तिक व्यक्ति या अन्य देवों के उपासक) मिलो और वे कहें कि
आप गलत ईष्ट की पूजा कर रहे हो या कहें कि क्या रखा है भक्ति में? आदि-आदि विचार
अभक्तों (असन्तों) के सुनकर भक्त अपनी साधुता नहीं छोड़ता।(23)
 वाणी नं. 24 :-
गरीब, पतिब्रता चूके नहीं, साखी चंदर सूर। खेत चढे सें जानिये, को कायर को सूर।।24।।
 भावार्थ :- यदि वास्तव में दृढ़ भक्त (पतिव्रता आत्मा) है तो वह कभी अपने धर्म-कर्म
मर्यादा में चूक (त्राटि) नहीं आने देगा। इसके साक्षी चंदर (चाँद=डववद) तथा सूर
(सूरज=ैनद) हैं। भावार्थ है कि जिस तरह सूर्य और चन्द्रमा अपनी गति को बदलते नहीं,
दृढ़ भक्त भी ऐसे ही अटल आस्थावान होता है। उसकी परीक्षा उस समय होगी जब कोई
आपत्ति आती है। जैसे कायर तथा शूरवीर की परीक्षा युद्ध के मैदान में होती है।(24)
 वाणी नं. 10 :-
गरीब, पतिब्रता सो जानिये, जाके दिल नहिं और। अपने पीव के चरण बिन, तीन लोक नहिं ठौर।।10।।
 भावार्थ :- पतिव्रता यानि एक ईष्ट का उपासक उसे जानो जिसके दिल में अन्य के
प्रति श्रद्धा न हो। उसकी आत्मा यह माने कि मेरे परमेश्वर पति के चरणों के अतिरिक्त मेरा
तीन लोक में ठिकाना नहीं है।(10)
जो दृढ़ भक्त यानि पतिव्रता आत्मा हुए हैं, उनका वर्णन किया है :-
 वाणी नं. 28 :-
गरीब, पतिब्रता चूके नहीं, तन मन जावौं सीस। मोरध्वज अरपन किया, सिर साटे जगदीश।।28।।
 भावार्थ :- राजा मोरध्वज पतिव्रता जैसा भक्त था। उसने अपने लड़के ताम्रध्वज का
सिर साधु रूप में उपस्थित श्री कृष्ण जी के कहने पर काट दिया यानि आरे (करौंत) से
शरीर चीर दिया। परमात्मा पति के लिए मोरध्वज आत्मा ने अपने पुत्रा को भी काटकर
समर्पित कर दिया। इस प्रकार पतिव्रता आत्मा का परमेश्वर के लिए यदि तन-मन-शीश भी
जाए तो उस अवसर को चूकती नहीं यानि हाथ से जाने नहीं देती। ऐसे भक्त को अपने ईष्ट
देव के लिए सर्वश न्यौछावर कर देना होता है। वह सच्चा भक्त है।(28)
 वाणी नं. 29.30 :-
गरीब, पतिब्रता प्रहलाद है, एैसी पतिब्रता होई। चौरासी कठिन तिरासना, सिर पर बीती लोइ।।29।।
गरीब, राम नाम छांड्या नहीं, अबिगत अगम अगाध। दाव न चुक्या चौपटे, पतिब्रता प्रहलाद।।30।।

Wednesday, 4 March 2020

श्री कृष्ण भक्त सुदामा की कथा

‘‘सुदामा जी को धनी बनाया’’
श्री कृष्ण जी तथा ब्राह्मण सुदामा जी सहपाठी (ब्सें थ्मससवू) थे। शिक्षा काल में
दोनों की घनिष्ठ मित्राता थी। शिक्षा उपरांत श्री कृष्ण जी द्वारिका के राजा बने। सुदामा जी
अपना पारंपरिक कार्य कर्मकाण्ड करके यजमानी करने लगे। वे वास्तव में ब्राह्मण थे। ग्रन्थों
के ज्ञान के अनुसार अपने जीवन को चलाते थे। परंतु ऋषियों को ही ग्रन्थों के गूढ़ रहस्य
का ज्ञान नहीं था। इस कारण से साधना शास्त्राविधि त्यागकर मनमाना आचरण जो गुरूजनों
ने बताया हुआ था, वही करते थे जिससे वर्तमान में कोई लाभ नहीं हो रहा था। श्री सुदामा
जी किसी यजमान को भ्रमित करके रूपये या अन्य पदार्थ नहीं लेते थे। केवल अपना व
परिवार का भोजन तथा कपड़े यदि आवश्यकता हुई तो लेते थे। कुछ दिन कोई क्रियाकर्म
करवाने वाला नहीं आया। भोजन की समस्या पूरे परिवार को हो गई। सुदामा जी की पत्नी
ने कहा कि आपके चार पुत्रा छोटे-छोटे हैं। भूख से बेहाल हैं। आप कहते हो कि द्वारिकाधीश
श्री कृष्ण मेरे मित्रा हैं। वे द्वारिका के राजा हैं। आप कुछ धन माँग लाओ। वे आपको मना
नहीं करेंगे क्योंकि आप कहते हो कि शिक्षा काल में वे आपके परम मित्रा थे। वे आपके साथ
घर आते थे और इकट्ठा खाना खाते थे। सुदामा जी ने कहा कि ब्राह्मण माँगता नहीं। अपने
कार्य कर्मकाण्ड करके दक्षिणा ले सकता है। श्री कृष्ण मेरे यजमान भी नहीं हैं। इसलिए मेरा
सिर नीचा हो जाएगा। यदि मित्राता समाप्त करनी हो तो मित्रा से कहो, कुछ दो। यह गलती
सुदामा विप्र नहीं कर सकता, भूखा मर सकता है।
 शास्त्रों में लिखा है कि जिसने पूर्व जन्म में दान-धर्म नहीं किया। वह अगले जन्म मे


निर्धन रहता है। मैंने पूर्व जन्म में कोई दान नहीं किया होगा। इसलिए मैं निर्धन हूँ। मुझे
धन नहीं मिल सकता। पत्नी ने चारों पुत्रों को उसके सामने खड़ा कर दिया जो एक रोटी
को एक-दूसरे से छीनने की कोशिश कर रहे थे जो मिसरानी ने छुपा रखी थी जो रात को
बासी बची थी। यह सोचा था कि एक का भी पेट नहीं भरेगा, कौन-से बच्चे को दूँ। इसलिए
उसको छुपा रखा था। वह एक लड़के के हाथ लग गई थी। उससे अन्य छीना-झपटी कर
रहे थे। मिसरानी ने कहा कि आप इन बच्चों के लिए माँग लाओ। वह दृश्य देखकर सुदामा
एकान्त में जाकर परमात्मा से विनय करने लगा तथा आँखों में पानी भर आया। हे प्रभु! ये
क्या दिन देख रहा हूँ। मुझे पूर्व जन्म में कोई मार्गदर्शक ठीक नहीं मिला। जिस कारण से
मैंने दान नहीं किया है। हे प्रभु! मुझसे ये भूखे बच्चे देखे नहीं जाते। या तो मुझे मार दो या
फिर इन चारों को अपने पास बुला लो। इतने में परमेश्वर कबीर जी एक यजमान का रूप
धारण करके आए और ढे़र सारा सूखा सीधा (आटा, चावल, दाल, खाण्ड, घी नमक-मिर्च,
बच्चों के कपड़े) देकर चले गए। ब्राह्मणी ने तुरंत भोजन बनाया। बच्चों को परोसा। इतने
में सुदामा जी आँसू पौंछकर रसोई की ओर गया तो बच्चे खाना खा रहे थे। पूछने पर पता
चला कि कोई भक्त आया था। यह सामान दान कर गया है। सुदामा जी ने पूछा कि क्या
नाम बताया था? पत्नी ने कहा कि दामोदर नाम बताया था। सुदामा जी ने अपने दिमाग
पर जोर दिया तो कोई भी दामोदर नाम का यजमान उनका नहीं था। उस नाम का कोई
भी व्यक्ति नगरी में भी नहीं था। उस दिन के अतिरिक्त तीन दिन का राशन पूरे परिवार
का था। पत्नी ने फिर आग्रह किया कि आप श्री कृष्ण जी से कुछ माँगकर ले आओ तो
सुदामा ने हाँ कर दी। परंतु मन में यही था कि जाकर आ जाऊँगा, माँगूगा नहीं। किसी मित्रा
या रिश्तेदारी में जाते समय उनके लिए घर से कुछ मिठाई बनवाकर ले जाने की परंपरा
थी। उसके स्थान पर पत्नी ने तीन मुठ्ठी यानि 250 ग्राम चावल भूनकर भक्त की चद्दर
के पल्ले से बाँध दिए। सुदामा जी द्वारिका में तीसरे दिन शाम को पहुँचा। मैले कपड़े, टूटी
जूती, एक भिखारी जैसे वेश में श्री कृष्ण जी के राजभवन के सामने द्वार पर खड़ा हो गया
और द्वारपाल से अंदर जाने के लिए आज्ञा चाही तो द्वारपाल ने परिचय पूछा। कौन हो?
क्या नाम है? कहाँ से आए हो? क्या काम है? यह राजा का राजभवन है। आपको किससे
मिलना है? सुदामा जी ने अपना परिचय दिया। फिर द्वारपाल ने कहा कि पहले हम महाराज
जी से आज्ञा लेकर आऐंगे, यदि आज्ञा हुई तो आपको मिलाऐंगे।
द्वारपाल ने श्री कृष्ण जी को सब पता बताया तो श्री कृष्ण नंगे पैरों सिंहासन छोड़कर
दौड़े-दौड़े आए और मैले धूल भरे कपड़ों समेत सुदामा जी को गले से लगा लिया और
सिंहासन पर बैठा दिया। फिर अपने हाथों सुदामा जी के पैर धोए। नहाया, नए कपड़े
पहनाए। कई प्रकार का भोजन बनवाया। खाने के लिए जो चावल सुदामा जी लाए थे,
उनको बड़ी रूचि के साथ श्री कृष्ण जी ने खाया। सुदामा जी के खाने के लिए कई प्लेटों
में हलवा-खीर, कई सब्जी-रोटी सामने रख दी। सुदामा जी को अपने घर का दृश्य याद
आया कि आज शाम का खाना घर पर नहीं है। बच्चे भूखे बैठे हैं, रो रहे होंगे। माँ रोटी-माँ
रोटी कह रहे होंगे। मैं ये पकवान कैसे खाऊँ? यदि नहीं खाऊँगा तो श्री कृष्ण जी को पत

चलेगा कि मैं कुछ माँगने आया हूँ। इसलिए एक ग्रास लेकर धीरे-धीरे खाने लगा। ऊंगलियों
को बार-बार मुख में चाटकर समय बिताने लगा। परंतु श्री कृष्ण की दृष्टि तो मित्रा के मुख
कमल पर थी। सब हाव-भाव देख रहे थे। कहा खाले, खाले यार सुदामा! क्यों उंगली चाटै
है? सुदामा जी ने दो रोटी खाई तथा खीर-हलवा नाममात्रा खाया और हाथ धोकर बैठ गया।
श्री कृष्ण जी ने पूछा कि बच्चे तथा भाभी जी कुशल हैं। निर्वाह ठीक चल रहा है। सुदामा
जी ने कहा कि :-
तेरी दया से है भगवन, हमको सुख सारा है। किसी वस्तु की कमी नहीं, मेरा ठीक गुजारा है।।
श्री कृष्ण जी तो समझ चुके थे कि यह मर जाएगा, माँगेगा नहीं। उसी समय सुदामा
जी को दूसरे कक्ष में विश्राम के लिए निवेदन किया और राजदरबार में जाकर विश्वकर्मा
जी को बुलाया जो मुख्य इन्जीनियर था तथा सुदामा जी का पूरा पता लिखाकर उसका
सुंदर महल बनाने का आदेश दिया तथा कहा कि लाखों रूपये का धन ले जा जो भक्त के
घर रख आना। यह कार्य एक सप्ताह में होना चाहिए। विश्वकर्मा जी ने छः दिन में कार्य
सम्पूर्ण करके रिपोर्ट दे दी। सुदामा जी प्रतिदिन चलने के लिए कहते तो श्री कृष्ण जी विशेष
विनय करके रोके रहे। सातवें दिन सुदामा चल पड़ा, नए बहुमूल्य वस्त्रा पहने हुए थे। रास्ते
में सोचता हुआ आ रहा था कि कृष्ण मेरे से पूछ रहा था कि किसी वस्तु का अभाव तो नहीं
है। क्या उसको दिखाई नहीं दे रहा था कि मेरा क्या हाल है? वही बात सही हुई कि मित्राता
समान हैसियत वालों की निभती है। इतनी देर में जंगली भीलों ने रास्ता रोक लिया और
कहा कि निकाल दे जो कुछ ले रखा है। सुदामा जी ने कहा कि मेरे पास कुछ नहीं है। भीलों
ने तलाशी ली तो कुछ नहीं मिला। सुदामा जी के कीमती धोती-कुर्ता छीन ले गए, उनको
नंगा छोड़ गए। सुदामा जी को यह सजा अविश्वास की मिली थी।
शाम को सूर्य अस्त के बाद अपनी झोंपड़ी से थोड़ी दूरी पर अंधेरे में एक वृक्ष के नीचे
खड़ा होकर देखने लगा तो देखा कि झोंपड़ी उखाड़कर फैंक रखी है। उसके स्थान पर
आलीशान महल दो मंजिल का बना है। सुदामा जी दुःखी हुए कि किसी ने झोंपड़ी (कुटिया)
भी उखाड़ दी और कब्जा करके अपना मकान बना लिया। बच्चे तथा पत्नी पता नहीं कहाँ
भूख के मारे डूबकर मर गए होंगे। अब जीवित रहकर क्या करना है? मैं भी दरिया में समाधि
लेकर जीवन अंत करता हूँ। यदि परिवार जीवित भी होगा तो भूख के मारे तड़फ रहा होगा।
मेरे से देखा नहीं जाएगा। वहाँ से चलने वाला था। उसकी पत्नी महल पर खड़ी होकर अपने
पति जी के आने की बाट देख रही थी। वह विचार कर रही थी कि विप्र जी अपनी झोंपड़ी
को न पाकर कुछ बुरी न सोच लें। इसलिए द्वारिका के रास्ते पर टकटकी लगाए खड़ी थी।
उसने उसी समय एक व्यक्ति अंधेरे में खड़ा महसूस हुआ। मिसरानी शीघ्रता से दीपक लेकर
उस ओर चली। सुदामा जी वृक्ष की ओट में होकर देखने लगा कि यह स्त्रा कौन है? दीपक
लेकर कहाँ जाएगी? दीपक की रोशनी में सुदामा ने अपनी पत्नी को पहचान लिया। परंतु
महल से आई है, यह क्या माजरा है? सुदामा जी ने कहा कि दीपक बुझाओ, मैं नंगा हूँ।
रास्ते में भीलों ने मेरे वस्त्रा छीन लिए जो श्री कृष्ण जी ने नए बहुत कीमती बनवाए थे।
पंडितानी ने दीपक बुझा दिया। सुदामा ने पूछा कि यह महल किसने बना दिया? अपन

झोंपड़ी किसने उखाड़ दी? आप किसके महल से आई हो? नौकरानी का कार्य करने लगी
हो क्या? पंडितानी ने कहा कि हे स्वामी! यह महल आपके मित्रा कृष्ण ने बनवाया है। आपके
जाने के चौथे दिन सैंकड़ों कारीगर आए, साथ में बैलों पर पत्थर-ईटें, चूना तथा अन्न-धन
लादकर लाए थे। छः दिन में सम्पूर्ण करके चले गए। आओ! यह आपका महल है। महल
में आकर देखा तो अन्न-धन से भरपूर था। जीवनभर का सामान था। पंडितानी ने पूछा कि
आपके कपड़े क्यों उतारे? आपके पास कुछ था ही नहीं, पुराने वस्त्रा थे। उनका भील क्या
करेंगे? तब सुदामा ने सारी घटना बताई तथा अपने उस घटिया विचार की भी जानकारी
दी जो मित्रा के प्रति आया था कि मेरे से कृष्ण पूछ रहा था कि घर में किसी वस्तु की कमी
तो नहीं है। गुजारा ठीक चल रहा है क्या? मैंने कह दिया था कि आपकी कृपा से सब कुशल
है। किसी वस्तु की कमी नहीं है। निर्वाह ठीक चल रहा है। पत्नी ने कहा कि आप कहाँ माँगने
वाले हो, वे तो अंतर्यामी हैं। सब जान गए थे। सुदामा जी ने कहा कि सब जान गए थे।
इसलिए तो मेरे वस्त्रा भी छिनवा दिए। मैं विचार करता जा रहा था कि देखा! मित्रा मेरे से
पूछ रहा था कि सब ठीक तो है। किसी वस्तु की कमी तो नहीं है। मैं सोच रहा था कि क्या
उसको मेरी दशा देखकर यह नहीं पता था कि यह दशा क्या ठीक-ठाक की होती है। ठीक
ही कहा है कि मित्राता तो समान हैसियत वालों की निभती है। मैंने तो इतना विचार किया
ही था कि उसी समय मेरे वस्त्रा भी लूट लिए गए। तब मिसरानी ने कहा कि आपकी परीक्षा
ली थी, परंतु आप यहीं पर चूके थे, उसी का झटका आपको दिया। अब देख तेरे मित्रा का
कमाल। बच्चों के वस्त्रा राजाओं जैसे हैं। चार सिपाही चारों कोनों पर रखवाली कर रहे हैं।
वाणी नं. 106 में यही कहा है कि संत सुदामा श्री कृष्ण के संगी यानि मित्रा थे जो दारिद्र
(टोटे यानि निर्धनता) की द्ररिया (नदी) यानि अत्यधिक निर्धन व्यक्ति था। उसके चावल
खाकर कंचन (स्वर्ण) के महल बख्श दिए यानि निःशुल्क (मुफ्त में) दे दिए।(106)
विचार :- श्री कृष्ण जी राजा थे। अपने मित्रा की इतनी सहायता करना एक राजा के
लिए कोई बड़ी बात नहीं है। इतनी सहायता तो एक प्रान्त का मंत्रा अपने मित्रा की आसानी
से कर सकता है।
परमेश्वर कबीर जी ने एक अति निर्धन मुसलमान लुहार तैमूरलंग की एक रोटी
खाकर सात पीढ़ी का राज्य बख्श दिया था। उसी जीवन में तैमूरलंग राजा बना जिसका
राज्य विशाल था। दिल्ली की राजधानी पर उसने अपना प्रतिनिधि छोड़ा था। उनकी मृत्यु
के उपरांत कुछ समय दिल्ली की गद्दी पर अन्य ने कब्जा कर लिया था। फिर तैमूरलंग के
पोते बाबर ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया। पहले तैमूरलंग का प्रतिनिधि दिल्ली पर बैठा
रखा था, उसकी तीसरी पीढ़ी ने अपने आपको स्वतंत्रा घोषित कर दिया। तब बाबर ने
लड़ाई करके दिल्ली का राज्य प्राप्त किया। बाबर से औरंगजेब तक छः पीढ़ी तथा प्रथम
तैमूरलंग, इस प्रकार कुल सात पीढ़ी का राज्य परमेश्वर कबीर जी ने तैमूरलंग को दिया।
1ण् तैमूरलंग 2ण् पोता बाबर। 3ण् हिमायुं पुत्रा बाबर 4ण् अकबर पुत्रा हिमायुं 5ण् जहांगीर
पुत्रा अकबर 6ण् शाहजहाँ हाँ।
विशेष भिन्नता :- जन्म-मरण का कष्ट न श्री कृष्ण का समाप्त है, न सुदामा का हुआ।

दोनों ही आगे के जन्मों में अन्य प्राणियों के शरीरों में जाऐंगे।
तैमूरलंग को सात पीढ़ी का राज्य भी मिला और मोक्ष भी मिला। सहायता में इतना
अंतर समझें। जैसे सहायता एक तो प्रान्त का मंत्रा करे, दूसरा देश का प्रधानमंत्रा करे।
कबीर जी यानि सतपुरूष को प्रधानमंत्रा जानो और श्री कृष्ण जी (श्री विष्णु जी) को प्रान्त
का मंत्रा जानो। फिर भी बात भक्ति की चल रही है। कबीर जी ने कहा है कि :-
कबीर, जो जाकी शरणा बसै, ताको ताकी लाज। जल सोंही मछली चढ़ै, बह जाते गजराज

Tuesday, 3 March 2020

बहुत ही महत्वपूर्ण कथा

एक ब्राह्मण

यात्रा करते-करते किसी नगर से गुजरा बड़े-बड़े महल एवं अट्टालिकाओं को देखकर ब्राह्मण भिक्षा माँगने गया किन्तु किसी ने भी उसे दो मुट्ठी अऩ्न नहीं दिया आखिर दोपहर हो गयी ब्राह्मण दुःखी होकर अपने भाग्य को कोसता हुआ जा रहा थाः “कैसा मेरा दुर्भाग्य है  इतने बड़े नगर में मुझे खाने के लिए दो मुट्ठी अन्न तक न मिला ? रोटी बना कर खाने के लिए दो मुट्ठी आटा तक न मिला ?

इतने में एक सिद्ध संत की निगाह उस पर पड़ी उन्होंने ब्राह्मण की बड़बड़ाहट सुन ली वे बड़े पहुँचे हुए संत थे उन्होंने कहाः

“ब्राह्मण  तुम मनुष्य से भिक्षा माँगो, पशु क्या जानें भिक्षा देना ?”

ब्राह्मण दंग रह गया और कहने लगाः “हे महात्मन्  आप क्या कह रहे हैं ? बड़ी-बड़ी अट्टालिकाओं में रहने वाले मनुष्यों से ही मैंने भिक्षा माँगी है”

संतः “नहीं ब्राह्मण मनुष्य शरीर में दिखने वाले वे लोग भीतर से मनुष्य नहीं हैं अभी भी वे पिछले जन्म के हिसाब ही जी रहे हैं कोई शेर की योनी से आया है तो कोई कुत्ते   की योनी से आया है, कोई हिरण की से आया है तो कोई गाय या भैंस की योनी से आया है उन की आकृति मानव-शरीर की जरूर है किन्तु अभी तक उन में मनुष्यत्व निखरा नहीं है और जब तक मनुष्यत्व नहीं निखरता, तब तक दूसरे मनुष्य की पीड़ा का पता नहीं चलता. ‘दूसरे में भी मेरा ही दिलबर ही है’ यह ज्ञान नहीं होता तुम ने मनुष्यों से नहीं, पशुओं से भिक्षा माँगी है”

ब्राह्मण का चेहरा  दुःख रहा था ब्राह्मण का चेहरा इन्कार की खबरें दे रहा था सिद्धपुरुष तो दूरदृष्टि के धनी होते हैं उन्होंने कहाः “देख ब्राह्मण मैं तुझे यह चश्मा देता हूँ इस चश्मे को पहन कर जा और कोई भी मनुष्य दिखे, उस से भिक्षा माँग फिर देख, क्या होता है”

ब्राह्मण जहाँ पहले गया था, वहीं पुनः गया योगसिद्ध कला वाला चश्मा पहनकर गौर से देखाः ‘ओहोऽऽऽऽ…. वाकई कोई कुत्ता है कोई बिल्ली है.  तो कोई बघेरा है आकृति तो मनुष्य की है लेकिन संस्कार पशुओं के हैं मनुष्य होने पर भी मनुष्यत्व के संस्कार नहीं हैं’ घूमते-घूमते वह ब्राह्मण थोड़ा सा आगे गया तो देखा कि एक मोची जूते सिल रहा है ब्राह्मण ने उसे गौर से देखा तो उस में मनुष्यत्व का निखार पाया

ब्राह्मण ने उस के पास जाकर कहाः “भाई तेरा धंधा तो बहुत हल्का है औऱ मैं हूँ ब्राह्मण रीति रिवाज एवं कर्मकाण्ड को बड़ी चुस्ती से पालता हूँ मुझे बड़ी भूख लगी है लेकिन तेरे हाथ का नहीं खाऊँगा फिर भी मैं तुझसे माँगता हूँ क्योंकि मुझे तुझमें मनुष्यत्व दिखा है”

उस मोची की आँखों से टप-टप आँसू बरसने लगे वह बोलाः “हे प्रभु  आप भूखे हैं ? हे मेरे रब  आप भूखे हैं ? इतनी देर आप कहाँ थे ?”

यह कहकर मोची उठा एवं जूते सिलकर टका, आना-दो आना वगैरह जो इकट्ठे किये थे, उस चिल्लर ( रेज़गारी ) को लेकर हलवाई की दुकान पर पहुँचा और बोलाः “हे हलवाई  मेरे इन भूखे भगवान की सेवा कर लो ये चिल्लर यहाँ रखता हूँ जो कुछ भी सब्जी-पराँठे-पूरी आदि दे सकते हो, वह इन्हें दे दो मैं अभी जाता हूँ”

यह कहकर मोची भागा घर जाकर अपने हाथ से बनाई हुई एक जोड़ी जूती ले आया एवं चौराहे पर उसे बेचने के लिए खड़ा हो गया

उस राज्य का राजा जूतियों का बड़ा शौकीन था उस दिन भी उस ने कई तरह की जूतियाँ पहनीं किंतु किसी की बनावट उसे पसंद नहीं आयी तो किसी का नाप नहीं आया दो-पाँच बार प्रयत्न करने पर भी राजा को कोई पसंद नहीं आयी तो मंत्री से क्रुद्ध होकर बोलाः “अगर इस बार ढंग की जूती लाया तो जूती वाले को इनाम दूँगा और ठीक नहीं लाया तो मंत्री के बच्चे तेरी खबर ले लूँगा”

दैव योग से मंत्री की नज़र इस मोची के रूप में खड़े असली मानव पर पड़ गयी जिस में मानवता खिली थी, जिस की आँखों में कुछ प्रेम के भाव थे,
चित्त में दया-करूणा थी,  ब्राह्मण के संग का थोड़ा रंग लगा था मंत्री ने मोची से जूती ले ली एवं राजा के पास ले गया राजा को वह जूती एकदम ‘फिट’ आ गयी, मानो वह जूती राजा के नाप की ही बनी थी राजा ने कहाः “ऐसी जूती तो मैंने पहली बार ही पहन रहा हूँ किस मोची ने बनाई है यह जूती ?”

मंत्री बोला  “हुजूर  यह मोची बाहर ही खड़ा है”

मोची को बुलाया गया उस को देखकर राजा की भी मानवता थोड़ी खिली राजा ने कहाः “जूती के तो पाँच रूपये होते हैं किन्तु यह पाँच रूपयों वाली नहीं, पाँच सौ रूपयों वाली जूती है जूती बनाने वाले को पाँच सौ और जूती के पाँच सौ, कुल एक हजार रूपये इसको दे दो”

मोची बोलाः “राजा साहिब तनिक ठहरिये यह जूती मेरी नहीं है, जिसकी है उसे मैं अभी ले आता हूँ”

मोची जाकर विनयपूर्वक ब्राह्मण को राजा के पास ले आया एवं राजा से बोलाः “राजा साहब  यह जूती इन्हीं की है”

राजा को आश्चर्य हुआ वह बोलाः “यह तो ब्राह्मण है इस की जूती कैसे ?”

राजा ने ब्राह्मण से पूछा तो ब्राह्मण ने कहा मैं तो ब्राह्मण हूँ यात्रा करने निकला हूँ”

राजाः “मोची जूती तो तुम बेच रहे थे इस ब्राह्मण ने जूती कब खरीदी और बेची ?”

मोची ने कहाः “राजन्  मैंने मन में ही संकल्प कर लिया था कि जूती की जो रकम आयेगी वह इन ब्राह्मणदेव की होगी जब रकम इन की है तो मैं इन रूपयों को कैसे ले सकता हूँ ? इसीलिए मैं इन्हें ले आया हूँ न जाने किसी जन्म में मैंने दान करने का संकल्प किया होगा और मुकर गया होऊँगा तभी तो यह मोची का चोला मिला है अब भी यदि मुकर जाऊँ तो तो न जाने मेरी कैसी दुर्गति हो ? इसीलिए राजन्  ये रूपये मेरे नहीं हुए मेरे मन में आ गया था कि इस जूती की रकम इनके लिए होगी फिर पाँच रूपये मिलते तो भी इनके होते और एक हजार मिल रहे हैं तो भी इनके ही हैं हो सकता है मेरा मन बेईमान हो जाता इसीलिए मैंने रूपयों को नहीं छुआ और असली अधिकारी को ले आया”

राजा ने आश्चर्य चकित होकर ब्राह्मण से पूछाः “ब्राह्मण मोची से तुम्हारा परिचय कैसे हुआ ?”

ब्राह्मण ने सारी आप बीती सुनाते हुए सिद्ध पुरुष के चश्मे वाली  आप के राज्य में पशुओं के दीदार तो बहुत हुए लेकिन मनुष्यत्व का विकास इस मोची में ही नज़र आया”

राजा ने कौतूहलवश कहाः “लाओ, वह चश्मा जरा हम भी देखें”

राजा ने चश्मा लगाकर देखा तो दरबारी वगैरह में उसे भी कोई सियार दिखा तो कोई हिरण, कोई बंदर दिखा तो कोई रीछ राजा दंग रह गया कि यह तो पशुओं का दरबार भरा पड़ा है  उसे हुआ कि ये सब पशु हैं तो मैं कौन हूँ ? उस ने आईना मँगवाया एवं उसमें अपना चेहरा देखा तो शेर  उस के आश्चर्य की सीमा न रही ‘ ये सारे जंगल के प्राणी और मैं जंगल का राजा शेर यहाँ भी इनका राजा बना बैठा हूँ ’ राजा ने कहाः “
ब्राह्मणदेव योगी महाराज का यह चश्मा तो बड़ा गज़ब का है  वे योगी महाराज कहाँ होंगे ?”

ब्राह्मणः “वे तो कहीं चले गये ऐसे महापुरुष कभी-कभी ही और बड़ी कठिनाई से मिलते हैं”

श्रद्धावान ही ऐसे महापुरुषों से लाभ उठा पाते हैं, बाकी तो जो मनुष्य के चोले में पशु के समान हैं वे महापुरुष के निकट रहकर भी अपनी पशुता नहीं छोड़ पाते

ब्राह्मण ने आगे कहाः ‘
राजन्  अब तो बिना चश्मे के भी मनुष्यत्व को परखा जा सकता है व्यक्ति के व्यवहार को देखकर ही पता चल सकता है कि वह किस योनि से आया है एक मेहनत करे और दूसरा उस पर हक जताये तो समझ लो कि वह सर्प योनि से आया है क्योंकि बिल खोदने की मेहनत तो चूहा करता है लेकिन सर्प उस को मारकर बल पर अपना अधिकार जमा बैठता है”

अब इस चश्मे के बिना भी विवेक का चश्मा काम कर सकता है और दूसरे को देखें उसकी अपेक्षा स्वयं को ही देखें कि हम सर्पयोनि से आये हैं कि शेर की योनि से आये हैं या सचमुच में हम में मनुष्यता खिली है ? यदि पशुता बाकी है तो वह भी मनुष्यता में बदल सकती है कैसे ?

तुलसीदाज जी ने कहा हैः

बिगड़ी जनम अनेक की सुधरे अब और आजु

तुलसी होई राम को रामभजि तजि कुसमाजु

कुसंस्कारों को छोड़ दें… बस अपने कुसंस्कार आप निकालेंगे तो ही निकलेंगे अपने भीतर छिपे हुए पशुत्व को आप निकालेंगे तो ही निकलेगा यह भी तब संभव होगा जब आप अपने समय की कीमत समझेंगे मनुष्यत्व आये तो एक-एक पल को सार्थक किये बिना आप चुप नहीं बैठेंगे पशु अपना समय ऐसे ही गँवाता है पशुत्व के संस्कार पड़े रहेंगे तो आपका समय बिगड़ेगा अतः पशुत्व के संस्कारों को आप निकालिये एवं मनुष्यत्व के संस्कारों को उभारिये फिर सिद्धपुरुष का चश्मा नहीं, वरन् अपने विवेक का चश्मा ही कार्य करेगा और इस विवेक के चश्मे को पाने की युक्ति मिलती है सत्संग से

मानवता से जो पूर्ण हो, वही मनुष्य कहलाता

बिन मानवता के मानव भी, पशुतुल्य रह  जाता है
       🙏🏻🙏🏻

Sunday, 1 March 2020

Dowry Abolition

Dowry Free India | A Short Video | Sant Rampal Ji

दहेज का खात्मा


This short video showcases the scenario of a girl named "Diksha" who visits a family of disciples of Sant Rampal Ji and gets astonished to discover that the family considers accepting and giving dowry a sin. 
Despite numerous efforts by the government, this demon of dowry remains an unscalable mountain to climb. Millions of families have been destroyed by this curse of dowry. 
By following the teachings of Sant Rampal Ji, this social evil along with many others is being eradicated at grass root level. The disciples of Sant Rampal Ji are setting a precedent by shunning dowry. In this way a very noble society is being created. By denouncing dowry & ostentations a sense of calm and peace is beginning to prevail in the civil society.

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