पत्थर को दूध पिलाना’’
नामदेव द्वारा बिठल भगवान की पत्थर की मूर्ति को दूध पिलाने का वर्णनः- नामदेव
जी के माता-पिता भगवान बिठल की पत्थर की मूर्ति की पूजा करते थे। घर पर एक
अलमारी में मूर्ति रखी थी। प्रतिदिन मूर्ति को दूध का भोग लगाया जाता था। एक कटोरे
में दूध गर्म करके मीठा मिलाकर पीने योग्य ठण्डा करके कुछ देर मूर्ति के सामने रख देते
थे। आगे पर्दा कर देते थे जो अलमारी पर लगा रखा था।
कुछ देर पश्चात् उसे उठाकर
अन्य दूध में डालकर प्रसाद बनाकर सब पीते थे।
नामदेव जी केवल 12 वर्ष के बच्चे थे। एक दिन माता-पिता को किसी कार्यवश दूर
अन्य गाँव जाना पड़ा। अपने पुत्रा नामदेव से कहा कि पुत्रा! हम एक सप्ताह के लिए अन्य
गाँव में जा रहे हैं। आप घर पर रहना। पहले बिठल जी को दूध का भोग लगाना, फिर बाद
में भोजन खाना। ऐसा नहीं किया तो भगवान बिठल नाराज हो जाऐंगे और अपने को शॉप
दे देंगे। अपना अहित हो जाएगा। यह बात माता-पिता ने नामदेव से जोर देकर और कई
बार दोहराई और यात्रा पर चले गए। नामदेव जी ने सुबह उठकर स्नान करके, स्वच्छ वस्त्रा
पहनकर दूध का कटोरा भरकर भगवान की मूर्ति के सामने रख दिया और दूध पीने की
प्रार्थना की, परंतु मूर्ति ने दूध नहीं पीया। भक्त ने भी भोजन तक नहीं खाया। तीन दिन बीत
गए।
प्रतिदिन इसी प्रकार दूध मूर्ति के आगे रखते और विनय करते कि हे बिठल भगवान!
दूध पी लो। आज आपका सेवादार मर जाएगा क्योंकि और अधिक भूख सहन करना मेरे
वश में नहीं है। माता-पिता नाराज होंगे। भगवान मेरी गलती क्षमा करो। मुझसे अवश्य कोई
गलती हुई है। जिस कारण से आप दूध नहीं पी रहे। माता-पिता जी से तो आप प्रतिदिन
भोग लगाते थे। नामदेव जी को ज्ञान नहीं था कि माता-पिता कुछ देर दूध रखकर भरा
कटोरा उठाकर अन्य दूध में डालते थे। वह तो यही मानता था कि बिठल जी प्रतिदिन दूध
पीते थे।
चौथे दिन बेहाल बालक ने दूध गर्म किया और दूध मूर्ति के सामने रखा और
कमजोरी के कारण चक्कर खाकर गिर गया। फिर बैठे-बैठे अर्जी लगाने लगा तो उसी समय
मूर्ति के हाथ आगे बढ़े और कटोरा उठाया। सब दूध पी लिया। नामदेव जी की खुशी का
कोई ठिकाना नहीं था। फिर स्वयं भी खाना खाया, दूध पीया। फिर तो प्रतिदिन बिठल
भगवान जी दूध पीने लगे।
सात-आठ दिन पश्चात् नामदेव के माता-पिता लौटे तो सर्वप्रथम पूछा कि क्या बिठल
जी को दूध का भोग लगाया? नामदेव ने कहा कि माता-पिता जी! भगवान ने तीन दिन तो
दूध नहीं पीया।
मेरे से पता नहीं क्या गलती हुई। मैंने भी खाना नहीं खाया। चौथे दिन
भगवान ने मेरी गलती क्षमा की, तब सुबह दूध पीया
तब मैंने भी खाना खाया, दूध पीया।
माता-पिता को लगा कि बालक झूठ बोल रहा है। इसीलिए कह रहा है कि चौथे दिन दूध
पीया। मूर्ति दूध कैसे पी सकती है? माता-पिता ने कहा सच-सच बता बेटा, नहीं तो तुझे पाप
लगेगा। बिठल भगवान जी ने वास्तव में दूध पीया है। नामदेव जी ने कहा, माता-पिता
वास्तव में सत्य कह रहा हूँ। पिताजी ने कहा कि कल सुबह हमारे सामने दूध पिलाना।
अगले दिन नामदेव जी ने बिठल भगवान की पत्थर की मूर्ति के सामने दूध का कटोरा रखा।
उसी समय मूर्ति के हाथ आगे बढ़े, कटोरा उठाया और सारा दूध पी गए। माता-पिता तो
पागल से हो गये। गली में जाकर कहने लगे कि नामदेव ने बिठल भगवान की मूर्ति को
सचमुच दूध पिला दिया। यह बात सारे गाँव में आग की तरह फैल गई, परंतु किसी को
विश्वास नहीं हो रहा था। बात पंचों के पास पहुँच गई कि नामदेव का पिता झूठ कह रहा
है कि मेरे पुत्रा नामदेव ने पत्थर की मूर्ति को दूध पिला दिया। पंचायत हुई।
नामदेव तथा
उसके पिता को पंचायत में बुलाया गया और कहा कि क्या यह सच है कि नामदेव ने बिठल
भगवान की मूर्ति को दूध पिलाया था। पिता ने कहा कि हाँ! हमारे सामने पिलाया था। पंचों
ने कहा कि यह भगवान बिठल जी की मूर्ति रखी है। यह दूध का कटोरा रखा है। हमारे
सामने नामदेव दूध पिलाए तो मानेंगे अन्यथा आपको सपरिवार गाँव छोड़कर जाना होगा।
नामदेव जी ने कटोरा उठाया और भगवान बिठल जी की मूर्ति के सामने किया। उसी समय
कटोरा बिठल जी ने हाथों में पकड़ा और सब दूध पी गया। पंचायत के व्यक्ति तथा दर्शक
हैरान रह गए। इस प्रकार नामदेव जी की पूर्व जन्म की भक्ति की शक्ति से परमेश्वर ने
चमत्कार किए।
‘‘नामदेव जी की छान (झोंपड़ी की घास-फूस से बनी छत) भगवान ने डाली’’
अन्य अद्भुत चमत्कार :- नामदेव जी के पिता जी का देहान्त हो गया था। घर के सभी
कार्यों का बोझ नामदेव पर आ गया। माता ने कहा कि बेटा! बारिश होने वाली है। अगले
महीने से वर्षा प्रारम्भ हो जाएगी। उससे पहले-पहले अपनी झोंपड़ी की छान (घास-फूस की
छत) छा ले यानि डाल ले। जंगल से घास ले आ जो विशेष घास होता है। नामदेव घास
लेने गए थे। रास्ते में सत्संग हो रहा था। घास लाना भूल गया। सत्संग सुनने के लिए कुछ
देर बैठा, मस्त हो गया। आनन्द आया। फिर भण्डारे में सेवा करने लगा। इस प्रकार शाम
हो गई। बिना घास के लौटे तो माँ ने कहा कि बेटा घास नहीं लाया। छान बनानी थी। कहने
लगा कि माता जी! सत्संग सुनने लग गया। पता ही नहीं लगा कि कब शाम हो गई। कल
अवश्य लाऊँगा। अगले दिन सोचा कि कुछ देर सत्संग सुन लेता हूँ, फिर चलकर घास-फूस
लाकर छान (झोंपड़ी की छत) बनाऊँगा। उस दिन भी भूल गया।
अगले दिन सत्संग समाप्त
होते ही जंगल में गया तो पैर पर गंडासी (लोहे की घास-कांटेदार झाड़ी काटने की कुल्हाड़ी
जैसी) लगी। जख्म गहरा हो गया। घास नहीं ला सका। पैर से लंग करता हुआ खाली हाथ
चला आ रहा था। परमात्मा ने नामदेव के रूप में आकर घास लाकर झोंपड़ी बना दी और
नामदेव जी के आने से पहले चले गए। नामदेव जी को देखकर माता जी ने पूछा कि बेटा!
पैर में क्या लग गया? नामदेव जी ने कहा कि माता जी! झोंपड़ी की छान के लिए जंगल
में घास काट रहा था। पैर में गंडासी लग गई। माताजी! मैं घास उठाकर चलने में सक्षम
नहीं था। इसलिए पैर ठीक होने के पश्चात् घास लाकर छान बनाऊँगा। माता ने कहा कि
यह क्या कह रहे हो बेटा? अभी तो आप छान तैयार करके गए हो। तब नामदेव ने नई छान
देखी तो कहा कि परमात्मा आए थे और छान छाकर (डालकर) चले गए। माता जी को सब
भेद बताया तो आश्चर्य करने लगी कि वह कौन था? नामदेव जी ने कहा कि माता जी! वह
परमेश्वर थे।
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नामदेव द्वारा बिठल भगवान की पत्थर की मूर्ति को दूध पिलाने का वर्णनः- नामदेव
जी के माता-पिता भगवान बिठल की पत्थर की मूर्ति की पूजा करते थे। घर पर एक
अलमारी में मूर्ति रखी थी। प्रतिदिन मूर्ति को दूध का भोग लगाया जाता था। एक कटोरे
में दूध गर्म करके मीठा मिलाकर पीने योग्य ठण्डा करके कुछ देर मूर्ति के सामने रख देते
थे। आगे पर्दा कर देते थे जो अलमारी पर लगा रखा था।
कुछ देर पश्चात् उसे उठाकर
अन्य दूध में डालकर प्रसाद बनाकर सब पीते थे।
नामदेव जी केवल 12 वर्ष के बच्चे थे। एक दिन माता-पिता को किसी कार्यवश दूर
अन्य गाँव जाना पड़ा। अपने पुत्रा नामदेव से कहा कि पुत्रा! हम एक सप्ताह के लिए अन्य
गाँव में जा रहे हैं। आप घर पर रहना। पहले बिठल जी को दूध का भोग लगाना, फिर बाद
में भोजन खाना। ऐसा नहीं किया तो भगवान बिठल नाराज हो जाऐंगे और अपने को शॉप
दे देंगे। अपना अहित हो जाएगा। यह बात माता-पिता ने नामदेव से जोर देकर और कई
बार दोहराई और यात्रा पर चले गए। नामदेव जी ने सुबह उठकर स्नान करके, स्वच्छ वस्त्रा
पहनकर दूध का कटोरा भरकर भगवान की मूर्ति के सामने रख दिया और दूध पीने की
प्रार्थना की, परंतु मूर्ति ने दूध नहीं पीया। भक्त ने भी भोजन तक नहीं खाया। तीन दिन बीत
गए।
प्रतिदिन इसी प्रकार दूध मूर्ति के आगे रखते और विनय करते कि हे बिठल भगवान!
दूध पी लो। आज आपका सेवादार मर जाएगा क्योंकि और अधिक भूख सहन करना मेरे
वश में नहीं है। माता-पिता नाराज होंगे। भगवान मेरी गलती क्षमा करो। मुझसे अवश्य कोई
गलती हुई है। जिस कारण से आप दूध नहीं पी रहे। माता-पिता जी से तो आप प्रतिदिन
भोग लगाते थे। नामदेव जी को ज्ञान नहीं था कि माता-पिता कुछ देर दूध रखकर भरा
कटोरा उठाकर अन्य दूध में डालते थे। वह तो यही मानता था कि बिठल जी प्रतिदिन दूध
पीते थे।
चौथे दिन बेहाल बालक ने दूध गर्म किया और दूध मूर्ति के सामने रखा और
कमजोरी के कारण चक्कर खाकर गिर गया। फिर बैठे-बैठे अर्जी लगाने लगा तो उसी समय
मूर्ति के हाथ आगे बढ़े और कटोरा उठाया। सब दूध पी लिया। नामदेव जी की खुशी का
कोई ठिकाना नहीं था। फिर स्वयं भी खाना खाया, दूध पीया। फिर तो प्रतिदिन बिठल
भगवान जी दूध पीने लगे।
सात-आठ दिन पश्चात् नामदेव के माता-पिता लौटे तो सर्वप्रथम पूछा कि क्या बिठल
जी को दूध का भोग लगाया? नामदेव ने कहा कि माता-पिता जी! भगवान ने तीन दिन तो
दूध नहीं पीया।
मेरे से पता नहीं क्या गलती हुई। मैंने भी खाना नहीं खाया। चौथे दिन
भगवान ने मेरी गलती क्षमा की, तब सुबह दूध पीया
तब मैंने भी खाना खाया, दूध पीया।
माता-पिता को लगा कि बालक झूठ बोल रहा है। इसीलिए कह रहा है कि चौथे दिन दूध
पीया। मूर्ति दूध कैसे पी सकती है? माता-पिता ने कहा सच-सच बता बेटा, नहीं तो तुझे पाप
लगेगा। बिठल भगवान जी ने वास्तव में दूध पीया है। नामदेव जी ने कहा, माता-पिता
वास्तव में सत्य कह रहा हूँ। पिताजी ने कहा कि कल सुबह हमारे सामने दूध पिलाना।
अगले दिन नामदेव जी ने बिठल भगवान की पत्थर की मूर्ति के सामने दूध का कटोरा रखा।
उसी समय मूर्ति के हाथ आगे बढ़े, कटोरा उठाया और सारा दूध पी गए। माता-पिता तो
पागल से हो गये। गली में जाकर कहने लगे कि नामदेव ने बिठल भगवान की मूर्ति को
सचमुच दूध पिला दिया। यह बात सारे गाँव में आग की तरह फैल गई, परंतु किसी को
विश्वास नहीं हो रहा था। बात पंचों के पास पहुँच गई कि नामदेव का पिता झूठ कह रहा
है कि मेरे पुत्रा नामदेव ने पत्थर की मूर्ति को दूध पिला दिया। पंचायत हुई।
नामदेव तथा
उसके पिता को पंचायत में बुलाया गया और कहा कि क्या यह सच है कि नामदेव ने बिठल
भगवान की मूर्ति को दूध पिलाया था। पिता ने कहा कि हाँ! हमारे सामने पिलाया था। पंचों
ने कहा कि यह भगवान बिठल जी की मूर्ति रखी है। यह दूध का कटोरा रखा है। हमारे
सामने नामदेव दूध पिलाए तो मानेंगे अन्यथा आपको सपरिवार गाँव छोड़कर जाना होगा।
नामदेव जी ने कटोरा उठाया और भगवान बिठल जी की मूर्ति के सामने किया। उसी समय
कटोरा बिठल जी ने हाथों में पकड़ा और सब दूध पी गया। पंचायत के व्यक्ति तथा दर्शक
हैरान रह गए। इस प्रकार नामदेव जी की पूर्व जन्म की भक्ति की शक्ति से परमेश्वर ने
चमत्कार किए।
‘‘नामदेव जी की छान (झोंपड़ी की घास-फूस से बनी छत) भगवान ने डाली’’
अन्य अद्भुत चमत्कार :- नामदेव जी के पिता जी का देहान्त हो गया था। घर के सभी
कार्यों का बोझ नामदेव पर आ गया। माता ने कहा कि बेटा! बारिश होने वाली है। अगले
महीने से वर्षा प्रारम्भ हो जाएगी। उससे पहले-पहले अपनी झोंपड़ी की छान (घास-फूस की
छत) छा ले यानि डाल ले। जंगल से घास ले आ जो विशेष घास होता है। नामदेव घास
लेने गए थे। रास्ते में सत्संग हो रहा था। घास लाना भूल गया। सत्संग सुनने के लिए कुछ
देर बैठा, मस्त हो गया। आनन्द आया। फिर भण्डारे में सेवा करने लगा। इस प्रकार शाम
हो गई। बिना घास के लौटे तो माँ ने कहा कि बेटा घास नहीं लाया। छान बनानी थी। कहने
लगा कि माता जी! सत्संग सुनने लग गया। पता ही नहीं लगा कि कब शाम हो गई। कल
अवश्य लाऊँगा। अगले दिन सोचा कि कुछ देर सत्संग सुन लेता हूँ, फिर चलकर घास-फूस
लाकर छान (झोंपड़ी की छत) बनाऊँगा। उस दिन भी भूल गया।
अगले दिन सत्संग समाप्त
होते ही जंगल में गया तो पैर पर गंडासी (लोहे की घास-कांटेदार झाड़ी काटने की कुल्हाड़ी
जैसी) लगी। जख्म गहरा हो गया। घास नहीं ला सका। पैर से लंग करता हुआ खाली हाथ
चला आ रहा था। परमात्मा ने नामदेव के रूप में आकर घास लाकर झोंपड़ी बना दी और
नामदेव जी के आने से पहले चले गए। नामदेव जी को देखकर माता जी ने पूछा कि बेटा!
पैर में क्या लग गया? नामदेव जी ने कहा कि माता जी! झोंपड़ी की छान के लिए जंगल
में घास काट रहा था। पैर में गंडासी लग गई। माताजी! मैं घास उठाकर चलने में सक्षम
नहीं था। इसलिए पैर ठीक होने के पश्चात् घास लाकर छान बनाऊँगा। माता ने कहा कि
यह क्या कह रहे हो बेटा? अभी तो आप छान तैयार करके गए हो। तब नामदेव ने नई छान
देखी तो कहा कि परमात्मा आए थे और छान छाकर (डालकर) चले गए। माता जी को सब
भेद बताया तो आश्चर्य करने लगी कि वह कौन था? नामदेव जी ने कहा कि माता जी! वह
परमेश्वर थे।
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