Sunday, 31 May 2020

"कबीर परमेश्वर" जी का अन्य वेश में छठे दिन मिलना’’ चौपाई

"कबीर परमेश्वर" जी का अन्य वेश में छठे दिन मिलना’’
चौपाई

दिवस पाँच जब ऐसहि बीता। निपट विकल हिय व्यापेउ चिन्ता।।
छठयें दिन अस्नान कहँ गयऊ। करि अस्नान चिंतवन कियऊ।।
पुहुप वाटिका प्रेम सोहावन। बहु शोभा सुन्दर शुठि पावन।।
तहां जाय पूजा अनुसारा। प्रतिमा देव सेव विस्तारा।।
खोलि पेटारी मूर्ति निकारी। ठाँव ठाँव धरि प्रगट पसारी।।
आनेउ तोरि पुहुप बहु भाँती। चौका विस्तार कीन्ही यहि भाँती।।
भेष छिपाय तहाँ प्रभु आये। चौका निकटहिं आसन लाये।।
धर्मदास पूजा मन लाये। निपट प्रीति अधिक चित चाये।।
मन अनुहारि ध्यान लौलावई। कहि कहि मंत्रा पुहुप चढ़ावई।।
चन्दन पुष्प अच्छत कर लेही। निमित होय प्रतिमा पर देही।।
चवर डोलावहिं घण्ट बजायी। स्तुति देव की पढ़ैं चित लायी।।
करि पूजा प्रथमहि शिर नावा। डारि पेटारी मूर्ति छिपावा।।
सतगुरू बचन
अहो सन्त यह का तुम करहूँ। पौवा सेर छटंकी धरहूँ।।
केहि कारण तुम प्रगट खिडायहु। डारि पेटारी काहे छिपायेहु।।
धर्मदास बचन
बुद्धि तुम्हार जान नहि जाई। कस अज्ञानता बोलहु भाई।।
हम ठाकुर कर सेवा कीन्हा। हम कहँ गुरू सिखावन दीन्हा।।
ता कहँ सेर छटंकी कहहूँ। पाहन रूप ना देव अनुसरहूँ।।
सतगुरू बचन
अहो संत तुम नीक सिखावा। हमरे चित यक संशय आवा।।
एक दिन हम सुनेउ पुराना। विप्रन कहे ज्ञान सुनिधाना।।
वेद वाणि तिन्ह मोहि सुनावा। प्रभु कै लीला सुनि मन भावा।।
कहे प्रभु वह अगम अपारा। अगम गहे नहि आव अकारा।।
सुनेउँ शीश प्रभुकेर अकाशा। पग पताल तेहि अपर निवाशा।।
एकै पुरूष जगत कै ईसा। अमित रूप वह लोचन अमीसा।।
सोकित पोटली माहि समाहीं। अहो सन्त यह अचरज आहीं।।
औ गुरू गम्य मैं सुना रे भाई। अहैं संग प्रभु लखौ न जाई।।
अहो सन्त मैं पूछहुँ तोहीं। बात एक जो भाषो मोहीं।।
यहि घटमहँ को बोलत आही। ज्ञानदृष्टि नहि सन्त चिन्हाही।।
जौ लगि ताहि न चीन्हहुँ भाई। पाहन पूजि मुक्ति नहिं पाई।।
कोटि कोटि जो तीर्थ नहाओ। सत्यनाम विन मुक्ति न पाओ।।
जिन सुन्दर यह साज बनाया। नाना रंग रूप उपजाया।।
ताहि न खोजहु साहु के पूता। का पाहन पूजहु अजगूता।।
धर्मदास सुनि चक्रित भयऊ। पूजा पाती बिसरि सब गयऊ।।
एक टक मुख जो चितवत रहाई। पलकौ सुरति ना आनौ जाई।।
प्रिय लागै सुनि ब्रह्मका ज्ञाना। विनय कीन्ह बहु प्रीति प्रमाना।।
धर्मदास वचन (ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 16)
अहो साहब तब बात पियारी। चरण टेकि बहु विनय उचारी।।
अहो साहब जस तुम्ह उपदेशा। ब्रह्मज्ञान गुरू अगम संदेशा।।
छठयें दिवस साधु एक आये। प्रीय बात पुनि उनहु सुनाये।।
अगम अगाधि बात उन भाखा। कृत्रिम कला एक नहिं राखा।।
तीरथ व्रत त्रिगुण कर सेवा। पाप पुण्य वह करम करेवा।।
सो सब उन्हहि एक नहिं भावै। सबते श्रेष्ठ जो तेहि गुण गावै।।
जस तुम कहेहु बिलोई बिलोई। अस उनहूँ मोहि कहा सँजोई।।
गुप्त भये पुनि हम कहँ त्यागी। तिन्ह दरशन के हम बैरागी।।
मोरे चित अस परचै आवा। तुम्ह वै एक कीन्ह दुइ भावा।।
तुम कहाँ रहो कहो सो बाता। का उन्ह साहब कहँ जानहु ताता।।
केहि प्रभु कै तुम सुमिरण करहू। कहहु बिलोइ गोइ जनि धरहू।।
सतगुरू वचन
अहो धर्मदास तुम सन्त सयाना। देखौ तोहि में निरमल ज्ञाना।।
धर्मदास मैं उनकर सेवक। जहँहि सो भव सार पद भेवक।।
जिन कहा तुमहिं अस ज्ञाना। तिन साहेब कै मोहि सहिदाना।।
वे प्रभु सत्यलोकके वासी। आये यहि जग रहहि उदासी।।
नहिं वौ भग दुवार होइ आये। नहिं वो भग माहिं समाये।।
उनके पाँच तत्त्व तन नाहीं। इच्छा रूप सो देह नहिं आहिं।।
निःइच्छा सदा रहँहीं सोई। गुप्त रहहिं जग लखै न कोई।।
नाम कबीर सन्त कहलाये। रामानन्द को ज्ञान सुनाये।।
हिन्दू तुर्क दोउ उपदेशैं। मेटैं जीवन केर काल कलेशैं।।
माया ठगन आइ बहु बारी। रहैं अतीत माया गइ हारी।।
तिनहि पठावा मोहे तोहि पाही। निश्चय उन्ह सेवक हम आही।।
अहो सन्त जो तुम कारज चहहू। तो हमार सिखावन चित दे गहहू।।
उनकर सुमिरण जो तुम करिहौ। एकोतर सौ वंशा लै तरिहौ।।
वो प्रभु अविगत अविनाशी। दास कहाय प्रगट भे काशी।।
भाषत निरगुण ज्ञान निनारा। वेद कितेब कोइ पाव न पारा।।
तीन लोक महँ महतो काला। जीवन कहँ यम करै जंजाला।।
वे यमके सिर मर्दन हारे। उनहि गहै सो उतरै पारे।।
जहाँ वो रहहि काल तहँ नाहीं। हंसन सुखद एक यह आही।।
धर्मदास वचन (ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 17)
अहो साहब बलि बलि जाऊँ। मोहिं उनके सँदेश सुनाऊँ।।
मोरे तुम उनहीं सम आही। तुम वै एक नाहिं बिलगाई।।
नाम तुम्हार काह है स्वामी। सो भाषहु प्रभु अन्तर्यामी।।
सतगुरू वचन
धर्मनि नाम साधु मम आही। सन्तन माँह हम सदा रहाही।।
साधु संगति निशिदिन मन भावै। सन्त समागम तहाँ निश्चय जावैं।।
जो जिव करै साधु सेवकाई। सो जिव अति प्रिय लागै भाई।।
हमरे साहिब की ऐसन रीति। सदा करहिं सन्त समागम सो प्रीती।।
जो जिव उन्हकर दीक्षा लेहीं। साधू सेव सिखावन देहीं।।
जीव पर दया अरू आतम पूजा। सतपुरूष भक्ति देव नहिं दूजा।।
सद्गुरू संकट मोचक आहीं। सच्चि भक्ति छुवैं यम नाहीं।।
धर्मदास बचन (ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 18)
अहो साहब तुम्ह अविगत अहहू। अमृत वचन तुम निश्चय कहहू।।
हे प्रभु पूछेऊँ बात दुइ चारा। अब मैं परिचय भेद विचारा।।
सो तो हम नहिं जानहिं स्वामी। तुम कहहु प्रभु अंतरयामी।।
सतगुरू वचन
अहो धर्मदास तुम्ह भल यह भाखो। कहो सो जो प्रतीति तुम राखो।।
अहहु निगुरा कि गुरू कीन्हूँ भाई। तौन बात मोहि कहहु बुझाई।।
धर्मदास वचन
समर्थ गुरू हमने कीन्हा। यह परिचे गुरू मोहि न दीन्हा।।
रूपदास विठलेश्वर रहहीं। तिनकर शिष्य सुनहुँ हम अहहीं।।

उन मोहिं इहे भेद समुझावा। पूजहु शालिग्राम मन भावा।।
गया गोमती काशी परागा। होइ पुण्य शुद्ध जनम अनुरागा।।
लक्ष्मी नारायण शिला कै दीन्हा। विष्णु पंजर पुनि गीता चीन्हा।।
जगन्नाथ बलभद्र सहोद्रा। पंचदेव औरो योगीन्द्रा।।
बहुतैं कही प्रमोध दृढ़ाई। विष्णुहिं सुमिरि मुक्ति होइ भाई।।
गुरू के वचन शीश पर राखा। बहुतक दिन पूजा अभिलाखा।।
तुम्हरे भेष मिले प्रभु जबते। तुम बानी प्रिय लागी तबते।।
वे गुरू तुम्हहीं सतगुरू अहहू। सारभेद मोहिं प्रभु कहहू।।
तुम्हरा दास कहाउब स्वामी। यमते छोड़ावहु अन्तरयामी।।
उनहूँ कर नाहीं निन्द करावै। अस विश्वास मोरे मन आवै।।
वह गुरू सर्गुण निर्गुण पसारा। तुमहौ यमते छोड़ावनहारा।।
सतगुरू वचन
सुनु धर्मनि जो तव मन इच्छा। तौ तोहिं देउँ सार पद दिच्छा।।
दो नाव पर जो होय असवारा। गिरे दरिया में न उतरे पारा।।
तुम अब निज भवन चलि जाऊ। गुरू परीक्षा जाइ कराऊ।।
अब तुम रूपदास पै जाओ। अपना संसा दूर कराओ।।
जो गुरू तुम्हैं न कहैं सँदेशा। तब हम तुम्ह कहँ देवें उपदेशा।।
धर्मदास वचन
(ज्ञान प्रकाश पृष्ठ 19)
हे साहेब एक आज्ञा चाहों। दया करो कछु प्रसाद लै आवों।।
सतगुरू वचन
हे धर्मदास मोहि इच्छा नाहीं। छुधा न व्यापै सहज रहाहीं।।
सत्यनाम है मोर अधारा। भक्ति भजन सतसंग सहारा।।
धर्मदास वचन
अहो साहब जो अन्न न खाहू। तो मोरे चितकर मिटै न दाहू।।
सतगुरू वचन
तुमरी इच्छा तो ल्यावहु भाई। अन्न खायें तब हम जाई।।
धर्मदास उठि हाट सिधाये। बतासा पेड़ा रूचि लै आये।।
धरेउ मोर आगे भाव ऊचेरा। विनय भाव कीन्ह बहुतेरा।।
विमल भाव किन्हा धर्मदासा। खाया प्रसाद पेड़ा पतासा।।
अहो साहु अब अज्ञा देहू। गुरू पहँ जाय मैं आशिष लेहू।।
धर्मदास वचन
करि दण्डवत धर्मनि कर जोरी। अब कब सुदिन होई मोरी।।
तेहि दिन सुदिन लेखे प्रभुराई। जेहि दिन तुव पुनः दरशन पाई।।
हम कहँ निज चेरा करि जानो। सत्य कहौं निश्चय करि मानो।।
आशिष दै प्रभु चले तुरन्ता। अबिगति लीला लखे को अन्ता।।
धर्मदास चितवहिं मगु ठाढो। उपजा प्रेम हृदय अति गाढो।।
भावार्थ :- धर्मदास जी ने परमेश्वर कबीर जी से कहा कि हे प्रभु! आपकी आज्ञा हो तो
कुछ प्रसाद खाने को लाऊँ। परमात्मा ने कहा कि मुझे क्षुधा (भूख) नहीं लगती। मैं सतनाम
स्मरण के आधार रहता हूँ। धर्मदास जी ने कहा कि यदि आप मेरा अन्न नहीं खाओगे तो
मेरी दाह यानि तड़फ समाप्त नहीं होगी। आप अवश्य कुछ भोग लगाओ। तब परमेश्वर
कबीर जी ने कहा कि जो तेरी इच्छा है, ले आ। धर्मदास दुकान से बतासे और पेड़े ले आया।
धर्मदास का सच्चा भाव देखकर परमात्मा जी ने भोग लगाया। फिर कहा कि हे साहु (सेठ)
धर्मदास! मुझे आज्ञा दे, मैं अपने गुरू जी के पास काशी में जाकर आशीर्वाद ले लुँ। धर्मदास
जी ने कहा कि प्रभु! अब पुनः मेरे कब अच्छे दिन आएँगे? मेरे वह सुदिन लेखे में होंगे जब
आप पुनः मुझे मिलोगे। आप मुझे अपना दास मान लो, मैं विश्वास के साथ कह रहा हूँ।
प्रभु कबीर जी धर्मदास को आशीर्वाद देकर चल पड़े। धर्मदास उस रास्ते को देखता रहा
और हृदय में परमात्मा के प्रति विशेष प्रेम उमड़ रहा था।

Friday, 29 May 2020

"सतगुरू की भूमिका"

"सतगुरू की भूमिका"
पारख के अंग की वाणी नं. 117.122 :-
गरीब, कदली बीच कपूर है, ताहि लखै नहीं कोय। पत्रा घूंघची बर्ण है, तहां वहां लीजै जोय।।117।।
गरीब, गज मोती मस्तक रहै, घूमै फील हमेश। खान पान चारा नहीं, सुनि सतगुरु उपदेश।।118।।
गरीब, जिनकी अजपा ध्वनि लगी, तिनका योही हवाल। सो रापति पुरूष कबीर के, मस्तक जाकै लाल।।119।।
गरीब, सीप समंदर में रहै, बूठै स्वांति समोय। वहां गज मोती जदि भवै, तब चुंबक चिडिया होय।।120।।
गरीब, चुंबक चिडिया चंच भरि, डारै नीर बिरोल। जदि गज मोती नीपजै, रतन भरे चहंडोल।।121।।
गरीब, चुंबक तो सतगुरु कह्या, स्वांति शिष्य का रूप। बिन सतगुरु निपजै नहीं, राव रंक और भूप।।122।।

 सरलार्थ :- इन वाणियों में सतगुरू की भूमिका प्रमाण सहित समझाई है। कहा है कि
(कदली) केले के पेड़ के कोइए (केले का पूरा पेड़ पत्तों ही से निर्मित है। सबसे ऊपर वाला
पत्ता गोलाकार में कीप की तरह ऊपर से चौड़ा गोलाकार नीचे कम परिधि का होता है। बीच
में (थोथा) खाली होता है। उस गोल पत्ते के खाली भाग को कोइया कहते हैं।) में स्वाति
नक्षत्रा की वर्षा की बूँद गिर जाती है तो उस केले के पत्ते में कपूर बन जाता है। केला शिष्य
है। स्वांति सतगुरू का मंत्रा नाम है। नाम यदि योग्य शिष्य को दिया जाता है तो उसमें भक्ति
रूपी कपूर तैयार होता है। मोक्ष मिलता है।
 अन्य उदाहरण (गज) हाथी का दिया है। कहा है कि हाथी के मस्तिक में एक स्थान
परमात्मा ने बनाया है। श्वांति नक्षत्रा की बारिश की बूँद ‘‘चुंबक’’ नाम की चिडि़या पृथ्वी पर
गिरने से पहले अपने मुख में ग्रहण कर लेती है। वह कभी-कभी हाथी के मस्तक पर बैठी होती है। उसका स्वभाव है कि बारिश की बूँद को मुख में डालूँ। फिर उसका कुछ अंश मुख
से नीचे गिर जाता है। वह उस हाथी के मस्तक में बने सुराख में गिर जाता है। उससे हाथी
के माथे में बने सुराख में अंदर-अंदर मोती बनने लग जाते हैं। जैसे माता का गर्भ का बच्चा
बढ़ता है तो माता का पेट भी बढ़ता रहता है। फिर समय आने पर बच्चा सुरक्षित जन्म लेता
है। इसी प्रकार हाथी के उस मोती उद्गम सुराख में कई चुंबक चिडि़या श्वांति की बूँदें डाल
देती हैं। हाथी के मस्तक वाले मोती उद्गम स्थान में सैंकड़ों मोती तैयार हो जाते हैं। समय
पूरा होने पर अपने आप निकलने लगते हैं। ढ़ेर लग जाता है। यह स्थान सब हाथियों में
नहीं होता।

इसमें हाथी शिष्य है। चुंबक चिडि़या सतगुरू है। श्वांति बूंद नाम है। जैसे ऐसे सतगुरू
रूप चुंबक चिडि़या सच्चे नाम रूपी श्वांति शिष्य के हृदय में डालते हैं। भक्ति तथा मोक्ष रूपी
मोती बनते हैं।
 जिस हाथी के मस्तक के अंदर मोती होते हैं। उसे अंदर ही अंदर नशा हो जाता है।
वह मस्ती में मतवाला होकर घूमता रहता है। चारा खाना भी छोड़ देता है। जिन साधकों
ने सतगुरू जी से उपदेश सुनकर दीक्षा लेकर सच्चे मन से अजपा जाप जपा तो उनकी ऐसी
ही दशा हो जाती है। वे कबीर परमात्मा के (रापति) हाथी हैं जिनके हृदय में भक्ति रूपी
लाल बन रहा है।
 अन्य उदाहरण सीप का दिया है। सीप (सीपि) एक जल की जीव है। समुद्र में रहती
है। समुद्र का जल खारा होता है। जिस समय बारिश होने को होती है, तब समुद्र का जल
अंदर से कुछ गर्म होता है। उस ऊष्णता से सीप को बेचैनी होती है। वह जल के ऊपर
आकर मुख खोल लेती है। यदि उस समय बारिश की बूँदें गिर जाती हैं तो सीप को शांति
हो जाती है। अपना मुख बंद कर लेती है। उस जल को जो सीप के मुख में गिरा, श्वांति
कहते हैं। जिस सीप में श्वांति गिरी, उसमें मोती बन जाता है। कुछ समय उपरांत परिपक्व
होकर मोती जल में गिर जाता है। इस उदाहरण में सीप शिष्य है। श्वांति दीक्षा मंत्रा हैं।
बादल सतगुरू है। सीप से मोती अपने आप नहीं निकलता। एक सुकच मीन है। वह मोती
के ऊपर के माँस को खाने के लिए उसको टक्कर मारती है कि इस माँस के अंदर घुसकर
खाऊँगी। परंतु वह माँस मात्रा प्याज के जाले जैसा रक्त वर्ण का होता है। सुकच मछली की
टक्कर से मोती सीप से निकलकर समुद्र में गिर जाती है। सुकच मीन सार शब्द है। श्वांती
सतनाम है। यदि सुकच मीन टक्कर नहीं मारती है तो वह मोती सीप में ही गलकर नष्ट हो
जाता है।
गरीब सुकच मीन मिलता ना भाई, तो श्वांति सीप अहले जाई।
अर्थात् संत गरीबदास जी ने बताया है कि यदि सुकच मछली नहीं मिलती तो सीप
तथा उसमें गिरी श्वांति (अहले) व्यर्थ जाती। सुकच मछली सारशब्द जानो। सारशब्द
सतनाम के जाप को सफल करता है। सतगुरू सारशब्द देता है।
 इसी प्रकार भक्त को प्रथम नाम, द्वितीय नाम (सतनाम) मिल गए। सारनाम नहीं
मिला तो मोक्ष नहीं होगा। वह जीवन व्यर्थ गया। परंतु अगला मनुष्य जन्म (स्त्रा-पुरूष का) मिलेगा। उस जन्म में सतगुरू मिले और सब तीनों नाम मिल गए तो मोक्ष हो जाएगा।
सतगुरू के बिना जीव का कल्याण संभव नहीं।

 वाणी नं. 123.125 :-
गरीब, अधरि सिंहासन गगनि में, बौहरंगी बरियाम। जाका नाम कबीर है, सारे सब के काम।।123।।
गरीब,पड़ाधनीसे काम है,प्रहलाद भगतिकूंबूझि। नरसिंहउतर्याअर्शसैं,किन्हैंनसमझीगूझि।।124।।
गरीब, नर मगेश आकार होय, कीन्ही संत सहाय। बालक वेदन जगतगुरु, जानत है सब माय।। ृ 125।।
 सरलार्थ :- परमात्मा कबीर जी का (अधर) ऊपर सतलोक में सिंहासन है। वह सब
भक्तों के कार्य सिद्ध करता है।
 प्रहलाद भक्त को धणी (परमात्मा) से काम पड़ा तो परमात्मा ने उसका कार्य सिद्ध
किया। प्रहलाद भक्त से पता करो कि कैसी अनहोनी परमात्मा ने की थी। परमात्मा समर्थ
कबीर (अर्श) आकाश से उतरा था। हिरण्यकशिपु को मारा था।
 (नर) मानव (मृगेश) सिंह रूप बनाकर संत प्रहलाद की सहायता की थी। जैसे बच्चा
भूखा-प्यासा होता है तो उसकी (बेदन) पीड़ा (कष्ट) को माता जानती है। दूध-जल पिलाती
है। ऐसे जगतगुरू अपने शिष्य के कष्ट को जानता है। अपने आप कष्ट निवारण कर देता है।
 वाणी नं. 126.133 :-
गरीब, इस मौले के मुल्क में, दोनौं दीन हमार। एक बामे एक दाहिनै, बीच बसै करतार।।126।।
गरीब, करता आप कबीर है, अबिनाशी बड़ अल्लाह। राम रहीम करीम है, कीजो सुरति निगाह।।127।।
गरीब, नर रूप साहिब धनी, बसै सकल कै मांहि। अनंत कोटि ब्रह्मंड में, देखौ सबहीं ठांहि।।128।।
गरीब, घट मठ महतत्त्व में बसै, अचरा चर ल्यौलीन। च्यारि खानि में खेलता, औह अलह बेदीन।।129।।
गरीब, कौन गडै कौन फूकिये, च्यार्यौं दाग दगंत। औह इन में आया नहीं, पूरण ब्रह्म बसंत।।130।।
गरीब, मात पिता जाकै नहीं, नहीं जन्म प्रमाण। योह तो पूरण ब्रह्म है, करता हंस अमान।।131।।
गरीब, आतम और प्रमात्मा, एकै नूर जहूर। बिच कर झ्यांई कर्म की, तातैं कहिये दूर।।132।।
गरीब, परमात्म पूरण ब्रह्म है, आत्म जीव धर्म। कल्प रूप कलि में पड्या, जासैं लागे कर्म।।133।।
 सरलार्थ :- परमात्मा के सब जीव हैं। दोनों धर्म (हिन्दू तथा मुसलमान) हमारे हैं। एक
परमात्मा के दायीं ओर जानो, दूसरा बायीं ओर। दोनों के मध्य में परमात्मा निवास करता
है।(126)

 कबीर जी स्वयं ही सृष्टि के रचयिता हैं। अविनाशी (बड़) बड़ा (अल्लाह) परमात्मा हैं।
राम कहो, रहीम कहो। (करीम) दयालु हैं। (किजो सुरति निगाह) ध्यान से देखो यानि विचार
करो।(127)
 परमात्मा (नर) मानव रूप में हैं। सबका (धनी) मालिक सर्वव्यापक है।(128.129)
 कोई तो मुर्दे को पृथ्वी में गाड़ देता है। कब्र बनाता है। कोई अग्नि में जला देता है।
यह सब मुझे (कबीर परमेश्वर जी को) अच्छा नहीं लगता। पूर्ण मुक्ति प्राप्त करो। वह तो
(परमात्मा) चारों दागों में नहीं आता। एक जमीन में गाड़ते हैं। एक धर्म अग्नि में जला देता
है। एक जल प्रवाह कर देता है। एक जंगल में पक्षियों के खाने के लिए डाल देता है। ये
चार दाग कहे जाते हैं। परंतु परमात्मा कबीर जी किसी दाग में नहीं आया अर्थात् अजर-अमर है कबीर जी।(130)
 परमात्मा के कोई माता-पिता नहीं हैं। उनके जन्म का कहीं पर प्रमाण नहीं है। कबीर
परमात्मा पूर्ण ब्रह्म भक्तों को (अमान) शांति प्रदान करता है।(131)
 आत्मा तथा परमात्मा की एक जैसी छवि है। बीच में पाप कर्मों का (झांई) मैल है।
इसलिए परमात्मा जीव से दूर कहा जाता है।(132)
 परमात्मा तो पूर्ण ब्रह्म बताया है। आत्मा जीव धर्म से जन्मती-मरती है। इसलिए जीव
धर्म में है।(133)

 वाणी नं. 134.141 :-
गरीब, कर्म लगे शिब बिष्णु कै, भरमें तीनौं देव। ब्रह्मा जुग छतीस लग, कछू न पाया भेव।।134।।
गरीब, शिब कूं ऐसा बर दिया, अपनेही परि आय। भागि फिरे तिहूं लोक में, भस्मागिर लिये ताय।।135।।
गरीब, बिष्णु रूप धरि छल किया, मारे भसमां भूत। रूप मोहिनी धरि लिया, बेगि सिंहारे दूत।।136।।
गरीब, शिब कूं बिंदु जराईयां, कंदर्प कीया नांस। फेरि बौहरि प्रकाशियां, ऐसी मनकी बांस।।137।।
गरीब, लाख लाख जुग तप किया, शिब कंदर्प कै हेत। काया माया छाडि़ करि, ध्यान कंवल शिब श्वेत।।138।।
गरीब, फूक्या बिंदु बिधान सैं, बौहर न ऊगै बीज। कला बिश्वंभर नाथ की, कहां छिपाऊं रीझ।।139।।
गरीब, पारबती पत्नी पलक परि, त्रिलोकी का रूप। ऐसी पत्नी छाडि़ करि, कहां चले शिब भूप।।140।।
गरीब, रूप मोहनी मोहिया, शिब से सुमरथ देव। नारद मुनि से को गिनै, मरकट रूप धरेव।।141।।

 वाणी नं. 134.136 का सरलार्थ :- सूक्ष्म मन की मार सर्व जीवों पर गिरती है। सब
एक समान सूक्ष्म मन के सामने विवश हैं। जब तक पूर्ण सतगुरू नहीं मिलता, तब तक सूक्ष्म
मन के सामने विवेक कार्य नहीं करता। हिन्दू धर्म के श्रद्धालु श्री शिव जी को तो सक्षम मानते
हैं। सब देवों का देव यानि महादेव कहते हैं। सूक्ष्म मन के कारण वे भी मार खा गए।
 प्रमाण :- जिस समय भस्मासुर ने तप करके भस्मकण्डा श्री शिव जी से वचनबद्ध
करके ले लिया था। तब भस्मासुर ने शिव से कहा कि मैं तेरे को भस्म करूँगा। तेरे को
मारकर तेरी पत्नी पार्वती को अपनी पत्नी बनाऊँगा। तब भय के कारण श्री शिव जी भाग
लिए। भस्मासुर में भी सिद्धियां थी। वह भी साथ दौड़ा। शिवजी भय के कारण अधिक गति
से दौड़ा तथा एक मोड़ पर मुड़ गया। उसी मोड़ पर एक सुंदर स्त्रा खड़ी थी। उसने
भस्मासुर की ओर अश्लील दृष्टि से देखा और बोली कि शिव तो आसपास रूकेगा नहीं,
जाने दे। आजा मेरे साथ मौज-मस्ती कर ले। मैं तेरा ही इंतजार कर रही हूँ। तुम पूर्ण मर्द
हो, शक्तिशाली हो। भस्मासुर पर काम वासना का भूत सवार था ही, उसे और क्या चाहिए
था? उसी समय रूक गया। युवती ने उसका हाथ पकड़कर नचाया। गंडहथ नृत्य करते
समय हाथ सिर पर करना होता है। भस्मासुर का भस्मकण्डे वाला हाथ भस्मासुर के सिर पर
करने को युवती ने कहा कि इस नृत्य में दायां हाथ सिर पर करते हैं। यह नृत्य पूरा करके
मिलन करेंगे। ज्यों ही भस्मासुर ने भस्मकण्डे वाला हाथ सिर पर किया तो युवती ने बोला
भस्म। उसी समय भस्मासुर जलकर नष्ट हो गया। वह युवती भगवान स्वयं ही शिव शंकर
की जान की रक्षा के लिए बने थे।, परंतु महिमा विष्णु को दी। विष्णु रूप में प्रकट होकर
परमात्मा उस भस्मकण्डे को लेकर श्री शिव के सामने खडे़ हो गए तथा शिव से कहा हे शिव! इतने तेज क्यों दौड़ रहे हो? शिव ने सब बात बताई कि आप भी दौड़ जाओ। भस्मासुर मुझे
मारने को मेरे पीछे लगा है। तब विष्णु रूपधारी परमात्मा ने कहा कि देख! आपका
भस्मकण्डा मेरे पास है। शिव ने तुरंत पहचान लिया और रूककर पूछा कि यह आपको कैसे
मिला? विश्वास नहीं हो रहा था। भगवान ने कहा यह न पूछ। अपना कण्डा लो और घर
को जाओ। परंतु शिव को विश्वास नहीं हो रहा था कि उग्र रूप धारण किए भस्मासुर से कैसे
ये भस्मकण्डा लिया। जिद कर ली। तब परमात्मा ने कहा कि फिर बताऊँगा। इतना कहकर
अंतर्ध्यान (अदृश्य) हो गए। शिव कुछ आगे गया तो देखा कि एक अति सुंदर युवती
अर्धनग्न शरीर में मस्ती से एक बाग में टहल रही थी। दूर तक कोई व्यक्ति दिखाई नहीं
दे रहा था। शिवजी ने इधर-उधर देखा और लड़की की ओर मिलन के उद्देश्य से चले।
लड़की शिव को देखकर मुस्कुराकर आगे को कुछ तेज चाल से चटक-मटककर चल पड़ी।
शिव ने बड़ी मसक्कत करने के बाद लड़की का हाथ पकड़ा। तब तक शिव का वीर्यपतन
हो चुका था। उसी समय विष्णु रूप में परमात्मा खड़े थे और कहा कि मैंने भस्मासुर को इस
प्रकार वश में करके गंडहथ नाच नचाकर भस्म किया है।
संत गरीबदास जी ने सूक्ष्म मन की शक्ति बताई है कि शिवजी की पत्नी पार्वती तीन
लोक में अति सुंदर स्त्रियों में से एक थी। अपनी पत्नी को छोड़कर शिवजी ने चंचल माया
यानि बद नारी से मिलन (ैमग) करने के लिए उसे पकड़ लिया। यह सूक्ष्म मन की उत्पत्ति
का उत्पात है।

 वाणी नं. 137.141 का सरलार्थ :-
 इन्हीं काल प्रेरित आत्माओं (देवियों) ने ब्रह्मादिक (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) को भी मोहित
कर लिया यानि अपने जाल में फँसा रखा है। शेष यानि अन्य बचे हुए गणेश जी भी स्त्रा
से संग में रहे। गणेश जी के दो पुत्रा थे। एक का नाम शुभम्=शुभ, दूसरे लाभम्=लाभ था।
शंकर (शिव जी) की अडिग (विचलित न होने वाली) समाधि (आंतरिक ध्यान) लगी थी जो
हमेशा (सदा) ध्यान में रहते हैं। उनको भी मोहिनी अप्सरा (स्वर्ग की देवी) ने मोहित करके
डगमग कर दिया था।




Tuesday, 26 May 2020

"कबीर परमेश्वर" इस प्रकार पूर्ण संतो को मिले. "Guru Arjan Dev Ji"

"कबीर परमेश्वर" इस प्रकार पूर्ण संतो को मिले.    "Guru Arjan Dev Ji"        "Lord kabir"  

"परमेश्वर कबीर" साहेब जी संत गरीबदास जी को 1727 में सतलोक से आकर मिले। 
अपना तत्वज्ञान कराया, नाम‌ दिया तथा सतलोक दर्शन करवाया।
गरीबदास जी ने वाणी में कहा है- हम सुल्तानी नानक तारे, दादू को उपदेश दिया। 
जात जुलाहा भेद न पाया, काशी माहे कबीर हुआ।।
"Guru Arjan Dev Ji"

"Lord kabir"

"कबीर परमेश्वर" जी जिंदा सन्त रूप में जम्भेश्वर जी महाराज (बिश्नोई धर्म प्रवर्तक) को समराथल में आकर मिले थे। अपना तत्वज्ञान समझाया। उन्होंने अपनी वाणी में प्रमाण दिया - 
जो जिन्दो हज काबे जाग्यो, थलसिर(समराथल) जाग्यो सोई*
वह परमात्मा जिन्दा रूप में थल सिर (समराथल) स्थान में आया और मुझे जगाया।
"Lord kabir"

"कबीर परमेश्वर" जी अब्राहिम अधम सुल्तान जी को मिले और सार शब्द का उपदेश कराया। 
कबीर सागर के अध्याय " सुल्तान बोध" में पृष्ठ 62 पर प्रमाण है:- 
प्रथम पान प्रवाना लेई। पीछे सार शब्द तोई देई।।
तब सतगुरु ने अलख लखाया। करी परतीत परम पद पाया।।
सहज चौका कर दीन्हा पाना(नाम)। काल का बंधन तोड़ बगाना।।
"Lord kabir"

मलूक दास जी को परमात्मा मिले
मलूक दास जी ने अपनी वाणी में परमात्मा कबीर साहेब का वर्णन किया है।
चार दाग से सतगुरु न्यारा, अजरो अमर शरीर।
दास मलूक सलूक कहत हैं, खोजो खसम कबीर।।


आदरणीय दादू साहेब भी कबीर परमेश्वर के साक्षी हुए
पूर्ण परमात्मा जिंदा महात्मा के रूप में मिले तथा सत्यलोक ले गए। 
दादू साहेब जी की अमृतवाणी में कबीर साहेब का वर्णन-
जिन मोकुं निज नाम दिया, सोइ सतगुरु हमार। 
दादू दूसरा कोई नहीं, कबीर सृजन हार।।

आदरणीय धर्मदास जी को परमात्मा सतलोक से आकर मथुरा में जिंदा महात्मा के रूप में मिले।
जिसका प्रमाण उनकी ये वाणी देती है।
"आज मोहे दर्शन दियो जी कबीर।
सत्यलोक से चल कर आए, काटन
जम की जंजीर।।"

हनुमान जी को भी मिले थे कबीर परमात्मा
कबीर सागर के "हनुमान बोध" में परमेश्वर कबीर साहेब द्वारा हनुमान जी को शरण में लेने का विवरण है।
परमेश्वर कबीर जी ने हनुमान जी को शरण में लेकर उनमें सत्य भक्ति बीज डाला ।


रामानंद जी को पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब मिले। 
रामानंद जी को 104 वर्ष की आयु में सत्य ज्ञान समझाकर तथा सतलोक दिखाया। 
दोहूं ठौर है एक तू, भया एक से दोय। गरीबदास हम कारणैं उतरे हैं मघ जोय। बोलत रामानंद जी, सुन कबीर करतार। गरीबदास सब रूप में, तू ही बोलनहार।।

त्रेता युग में कबीर परमेश्वर मुनींद्र नाम से प्रकट हुए तथा नल व नील को शरण में लिया।
उनकी कृपा से ही समुद्र पर पत्थर तैरे।
धर्मदास जी की वाणी में इसका प्रमाण है,
रहे नल नील जतन कर हार, तब सतगुरु से करी पुकार।
जा सत रेखा लिखी अपार, सिंधु पर शिला तिराने वाले।
धन्य-धन्य सत कबीर भक्त की पीड़ मिटाने वाले।

नानक जी को कबीर साहेब जिंदा महात्मा के वेश में आकर मिले थे।
उन्हें सचखंड यानी सत्यलोक के दर्शन कराए थे उन्होंने कबीर साहेब की महिमा गाते हुए कहा है 
गुरु ग्रन्थ साहिब
राग ‘‘सिरी‘‘ महला 1 पृष्ठ नं. 24 पर शब्द नं. 29
फाही सुरत मलूकी वेस, उह ठगवाड़ा ठगी देस।।
खरा सिआणां बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।।


परमात्मा कबीर साहेब ही नरसिंह रूप धर कर आए थे' 
वाणी:-
गरीब प्रहलाद भक्त कुँ दई कसौटी, चौरासी बर ताया। नरसिंह रूप धरे नारायण, खंभ फाड़ कर आया।

सुपच सुदर्शन को मिले कबीर परमात्मा
द्वापर युग में परमात्मा कबीर जी करुणामय नाम से आए हुए थे। उस समय सुपच सुदर्शन को मिले, अनमोल ज्ञान देकर उन्हें सतलोक का वासी किया।

विभीषण और मंदोदरी को मिले थे परमात्मा
"कबीर सागर" में प्रमाण है कि त्रेतायुग में कबीर परमेश्वर जी मुनींद्र ऋषि के रूप में आए थे। विभीषण और मंदोदरी को शरण में लेकर उन्हें नाम उपदेश देकर सत्य भक्ति प्रदान की। पूरी लंका नगरी में केवल वे दोनों ही भक्ति भाव तथा साधु विचार वाले थे। जिस कारण उनका अंत नहीं हुआ।

गरुड़ जी को हुए परमात्मा के दर्शन
"कबीर सागर" के गरुड़ बोध में कबीर परमेश्वर द्वारा पक्षीराज गरुड़ जी को शरण में लेने का विवरण मिलता है। 
परमेश्वर कबीर जी ने गरुड़ जी को शरण में लेकर सतभक्ति प्रदान की थी।


"कबीर सागर" के जगजीवन बोध में परमेश्वर कबीर जी द्वारा राजा जगजीवन सहित उसकी 12 रानियों, 4 पुत्रों को शरण में लेने का विवरण है। उनको कबीर परमेश्वर ने सत उपदेश देकर मोक्ष मार्ग प्रदान किया था।

"कबीर सागर" के भोपाल बोध में विवरण मिलता है 
जालंधर नगर के राजा भोपाल को परमेश्वर कबीर साहेब ने शरण में लेकर सतभक्ति प्रदान की, सतलोक दिखाया। साथ ही राजा भोपाल की 9 रानियों, 50 पुत्रों और एक पुत्री को शरण में लेने का विवरण है।





Friday, 22 May 2020

What is the most "spiritual book" (author) you know, and how did it change your life? "ITBP"

What is the most "spiritual book" (author) you know, and how did it change your life?
"ITBP"

In my opinion, I have been read many books in the term to get the sprituallity but the most effective book is
  •  "Gyan Ganga Book”authored by "Saint Rampal Ji" where i understand & learn about what is the right way of worship & what is the main objective of the human life and why it is so important as compare to other living organism.

"ITBP"
This is the book which affect me alot in terms of sprituallity where i get to know about who is the real god. What is the name of the god(i.e. Kabir) which has already describe in our holly books like Geeta,Vedas, Kuran Sharif,Bible & Gurugranth Saheb. Before getting this book i was living normal life and never think about what is actual role of the human in this earth but there is plenty of evidence that who are we? why we are here in this earth and why we comes again again in the birth & death cycle and how we can get ridof with that and can get complete salvation.

"ITBP"



Since i gets this book my perception regarding the life has changed. I am always curiosity to know why we all people do not have similar life? why people are poor and rich? why people have different religious and each has different god.

As per the Hindu religious Geeta, Vedas & Purana are holly books. There is mention the defination about real god and provide the path how human can achieve this true worship path The characteristic of god is he comes from the satlok and he comes straight in at earth surface without getting the birth from womb of mother. He does the leela(play) in the every yuga and meet with pure soul to give true devotion(tatva gyan)and riddoff from birth death cycle.

As per hindu religious "Bhrama Vishnu & mahesh" are three big loads and they used to do the worship of them and considered they three are immortal but as per geeta speaker tells to arjuna that "hey arjuna we both gets the birth death many time in this earth you dont know about this but i do"(adhyay 4 slok 5) which means krishan ji is not immortal.

Geeta speaker tells arjun "hey arjun you should find the "Tatvadarshi saint"(complete guru) and you should take gyan(knowledge) and do respect him. I dont know about him(adhyay 4 slok 34) which means krishan ji has not sufficient knowledge for complete salvation. Etc.

As per muslim religious Hazrat Mohm. Tells that he is kabir who create the earth and whatever in the between of sky and ground is made by them with in six days and 7th day he went to his throne at satlok. Kuran surat al-furkan no ayat 59. Etc



As per christanity Holly bible describe that God name is kabir ayub 36:5, Lord(almigthy) is kabir, but he do not scorn & hate from the people. Lord kabir is powerful and rational.

Thus there is lots of evidence like above which is sufficient to understand who is real god and what its specification. As per kabir vaani all the religious belongs to humanity there is not other religiou like Hindhu, Muslim, Sikh and christianity("Jeev Hamari Jati hai Manav Dharam Hamara Hindhu Muslim Sikh Issai koi dharam Nahi hai niyara")

  • So with the all this respect i will prefere this book to real all religius person where they can find true way of worship. People can get this book pdf to write on google "gyan ganga book pdf" free of cost.. 🥀🥀


You must also listen to the satsang of Saint Rampal Ji and read the books written by Him. Which you can download for free from this link.🥀




The Satsang Time of Saint Rampal Ji
:
1. On Shraddha Channel from 2 :00 AM
2. On Sadhana Channel from 07:30 PM
3. On Ishwar Channel from 08:30 PM


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Friday, 15 May 2020

What is Shrimad "Bhagavad Gita" & Who Wrote Bhagavad Gita?


Holy Shrimad "Bhagavad Gita": is a section of a massive Indian epic named "The Mahabharata", consisting of a summary of 700 concise verses of 18 brief chapters. Bhagavat, a spiritual teacher who renders knowledge to the devotees of God. The celestial song, Gītam means both a song and an act of chanting.

What is Shrimad "Bhagavad Gita" & Who Wrote Bhagavad Gita?
           

A Sanskrit scripture with its Origin - Bhagavad Gita: The "Bhagavad Gita" was written by Sage Ved Vyasa interweaving historical facts from the Mahabharata with an association of Krishna. The battle of the Mahabharata raged for 18 days. The army totalled 18 Akshauhinis, 7 on the Pandava side and 11 on the Kaurava (1 Akshauhini = 21,870 chariots + 21,870 elephants + 65,610 horses + 109,350 soldiers on foot). Casualties on both sides were high. When it all ended, the Pandavas won the war but lost almost everyone they held dear.

The knowledge given in Holy Shri Shrimad Bhagavad Gita is actually a summary of the Four Vedas (Rig-Veda, Sama-Veda, Yajur-Veda, and Atharva-Veda).
      

Who said the Knowledge of Holy Shrimad "Bhagwat Geeta"?

The knowledge of the holy Shrimad "Bhagavad Gita" Ji was spoken when the war of Mahabharata was going to take place. Arjuna resisted to take part in the war and thought, 'What good is a kingdom that's gained at the cost of his relative's lives?

Then, why did the war happen? This war cannot be termed as a ‘holy’ crusade because the (distribution of) property of two families was the only matter. As a peace messenger, Shri Krishna had visited three times, but to no avail.

Brahm (Kaal) had pledged that he will never appear before anyone in his real form. [For evidence see Gita, Adhyay 7, Shloka 24 -25; Adhyay 11, Shloka 48 and 32]. Brahm (Kaal), the narrator of the Holy Gita, by entering into Shri Krishan Ji's body like a ghost, is saying, "Arjun, I am an enlarged Kaal and have come here to eat everyone (Gita Adhyay 11 Shlok 32). This is my original appearance, which neither could anybody see before you, nor would anyone be able to see in the future"

This means that nobody can see this original form of Brahm / Kaal by the 'Yagya-Jap-Tap' and the method of 'Om' naam etc. mentioned in the Holy Shrimad Shrimad Bhagavad Gita, Adhyay 11 Shlok 48. Brahm / Kaal says, "I am not Krishna; these foolish people are considering the invisible / unmanifested me, as being visible / manifested (in human form) as Krishna because they are unaware of my bad policy that I never appear before anyone in this original Kaal form of mine. I remain hidden by my Yogmaya" (Gita Adhyay 7 Shlok 24, 25). Please think: - Why is Kaal himself calling his policy of remaining hidden as bad / inferior (Anuttam)?
The point to consider is that if a father does not even appear before his sons, then there is a fault in him, because of which he remains hidden, and at the same time also provides all the facilities to them. The actual reason is, that Kaal (Brahm) has to daily eat one-lakh human beings because of a curse on him. He has created 84 lakh births / life forms (yoni) to fix the extra 25 percent born daily and to make them bear the punishment for their actions (Karmas).
If Brahm starts eating someone's daughter, wife, son, or parent in front of them then everybody will start hating him.
Shrimad Bhagavad Gita Chapter 7 conclusion: Kaviragni (God Kabir) comes himself or sends any messenger (Sandesh Vaahak) of his, then all human beings, by doing true worship (Sat-bhakti) will escape Kaal's trap. Therefore, Brahm keeps everyone in the dark. He also mentions the salvation (Mukti) from his worship as 'the worst' ('Anuttamam') and his policy as 'worst' (Anuttam') in Holy Shrimad Bhagavad Gita, Adhyay (chapter) 7, Shloka 18, 24 and 25.
What does Holy Bhagavad Gita Teach Us?




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The Satsang Time of Saint Rampal Ji
:
1. On Shraddha Channel from 2 :00 AM
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This article will resolve your search query about holy Shrimad Bhagavad Gita online. Let's start.

Shrimad Bhagavad Gita answers almost all important questions about the human life. These questions pertain to spirituality.

What are different kinds of worship and what are their end results?
Who is the Supreme God?
What is the Mantra of Salvation?
What are the qualities of a True Spiritual Guru or Tatva Darshi Sant?
Holy Shrimad Bhagavad Gita Chapter (Adhyay) 4

The narrator of Holy Shrimad Bhagavad Gita Ji and Holy Vedas, Brahm (Kaal) is saying that Arjun, go in the refuge of Supreme God, then you will not die. For that (Gita Adhyay 4 Shlok 34) search for those saints who know the absolute truth about Supreme God. Prostrate before them (Do Dandvat Pranam), treat them respectfully with courtesy and honesty. When those Tatvdarshi saints are pleased, ask for initiation (Naam) from them. Then you will not take birth or die again.

Holy Shrimad Bhagavad Gita Chapter (Adhyay) 15
             

In Holy Shri Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 15 Mantra 1 to 4, it has been said that this is an upside-down tree of the world. The root above is Aadi Purush i.e. the Eternal God; the branches below are the three Gunas (Rajgun-Brahma, Satgun-Vishnu, and Tamgun-Shiv). I (Brahm-Kaal) do not know about this tree of the whole world i.e. the creation of the entire nature. Here in our discussion i.e. in the knowledge of Gita, I cannot impart the complete knowledge to you. For that find some Tatvdarshi Sant (Gita Adhyay 4 Shlok 34). Then he will impart the knowledge of the creation of the entire nature / universe and the state of all the Gods correctly to you. Thereafter, one should search for that Param Pad Parmeshwar (Supreme God with supreme state), having gone in whom, a devotee does not take birth or dies again i.e. attains complete salvation. The God who has created the tree of the world i.e. all the Brahmands, I (Brahm-Kaal) am also in the refuge of that God. Therefore, worship that Supreme God.

Holy Shrimad Bhagavad Gita Chapter (Adhyay) 17

The real teaching of Shrimad Bhagavad Gita is, 'how to avoid life's birth and death cycle' by doing true worship to achieve complete salvation; hinting three mantras 'om-tat-sat'.

In Holy Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 17 Shlok 23 it has been said

"Om - Tat - Sat iti nirdeshH BrhmnH trividhH smritH"

Meaning is that there is direction of Jaap sumiran of Om (1) Tat (2) Sat (3) this mantra, for attaining the Supreme God. One has to obtain this Naam from a Tatvdarshi Sant. There is mention of the Tatvdarshi Sant in Gita Adhyay 4 Shlok 34, and in Gita Adhyay 15 Shlok 1 to 4. The identity of a Tatvdarshi Saint has been described, and it has been said that after knowing the Tatvgyan (true knowledge) from the Tatvdarshi Saint, one should search for that Param Pad (supreme state) of Supreme God. Having gone where devotees do not return to the world i.e. they become completely liberated. That same Supreme God has created the entire universe.







The gist is as follows:-

SatPurush is the Purna Parmatma or the Supreme God.
Satnaam is the naam / mantra comprised of two mantras in which one is Om and other is 'Tat'. This tat is a coded mantra. And after this, Saarnaam is given to the worshipper by a Complete Guru. These Satnaam and Saarnaam are both mantras for doing sumiran.
Satlok is that place where SatPurush lives.
What is the Central Message of "Holy Shri Bhagavad Gita"?

We know, "Holy Shrimad Bhagavad Gita as it is" contains vast amount of knowledge about Almighty & Supreme God. But have we ever tried to search, or know about what is the central message of Holy Bhagavad Gita?. Let's explore…

There is a lot of difference in different types of Bhakti (worship). Whether you do bhakti (worship) of any god or goddess, you will definitely get its fruit, which will be perishable, but you will not get liberated, and the sinful deeds will also not end, to bear which you will have to take birth again and again.

You will attain salvation only by going in the refuge of a Complete Saint i.e. by taking naam-updesh (initiation) from a Complete Saint and doing bhakti of Supreme God.

Ye sansaar samajhda naahin, kehnda shaam dupahre noo|
Garibdas ye vakt jaat hai, rovoge is pahre noo||

It is written in Gita Adhyay 15 Shlok no. 17 that in reality, the Imperishable God is someone else, and He only by entering into the three loks sustains everyone, and He only is known by the name Eternal God i.e. Parmeshwar.

Holy Shrimad Bhagavad Gita Chapter (Adhyay) 4 Shlok 7: Shrimad Bhagavad Gita

Bhagavad Gita Adhyay 4 Shlok 7:

"Yadaa, yadaa, hi, dharmasya, glaaniH, bhavti, bharat,
Abhyutthaanam , adharmasya, tadaa, aatmaanm , srjaami, aham"(7)

Translation: (Bharat) Oh Bharat! (yadaa, yadaa) whenever (dharmasya) of righteousness (glaaniH) decline and (adharmasya) unrighteousness (abhyutthaanam ) rise (bhavti) occurs (tadaa) then (hi) only (aham ) I (aatmaanam ) my part incarnation (srjaami) create. (7)

In Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 4 Shlok 7, the Speaker of the knowledge of Gita says whenever hatred arises in righteousness, damage of righteousness occurs and there is an uprise of unrighteousness, then I (Kaal=Brahm=Kshar Purush) create i.e. give rise to my incarnations.

This is the technique of the incarnations of Kaal-Brahm (Kshar Purush) to destroy the risen unrighteousness on earth through a massacre and establish peace.

Supreme God Kavir i.e. Kabir manifesting in the form of a Guru in human body, by giving jaap of three mantras to God-loving soul, makes them do true bhakti; and by purifying that devotee friend, by His blessings, makes them achieve complete happiness by attaining the Supreme God. He increases the age of the worshipper. Sant Rampal Das Ji Maharaj is one of those incarnations of Supreme God (Param Akshar Brahm) who destroys unrighteousness through true spiritual knowledge.

Satguru God Kabir said that Oh Niranjan! If I wish, I can end your whole game in a moment, but by doing this I break my promise. Thinking this, I, imparting true knowledge to my beloved Hans (souls) and granting them the power of Shabd, will take them to Satlok, and said that –

Suno Dharmraya, hum sankhon hansa pad parsaaya ||
Jin linha humra prvana, so hansa hum kiye amaana ||

What does Holy Shri Bhagavad Gita Say About God?

In Holy Shrimad Bhagavad Gita there is a description of three Gods:

Kshar Purush i.e. Brahm,
Akshar Purush i.e. ParBrahm, and
Param Akshar Brahm i.e. Purna Brahm
Brahm / Kshar Purush: is known as Ish, who is the master of only twenty-one Brahmands.
ParBrahm / Akshar Purush: is known as Ishwar, who is the master of seven sankh Brahmands.
Purna Brahm / Param Akshar Purush: is known as Parmeshwar, who is the Master of the infinite Brahmands i.e. is the Master of the lineage.
Conclusion of Holy Shrimad Bhagavad Gita Chapter (Adhyay) 18 Shlok 62


     

In Holy Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 18 Mantra 62, Kaal instructs Arjun to go into the refuge of that God, by whose grace he will get completely liberated and will attain Supreme Peace and Eternal Place i.e. Satyalok. Likewise in Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 15 Mantra 4, it has been said that after finding a Tatvdarshi Saint, one should do Sadhna (wroship) as directed by him in accordance with the scriptures. It further says that then one should search for that 'Param Pad Parmeshwar' (Supreme State of the Supreme God), having gone where a worshipper never has birth-death i.e. attains eternal salvation.

In the above Gita shlokas, the narrator of Gita, Kaal (Kshar Purush / Brahm) is saying that I am also in the refuge of that same 'Aadi Purush Parmeshwar' (The First Supreme God).

In conclusion, Kaal is instructing Arjuna to go in to the refuge of some other Supreme God.

Holy Shrimad Bhagavad Gita - Misinterpretation

"The devotee community today is miles away from the true bhakti of God". The reason is as follows:

Holy Shrimad Bhagavad Gita Adhyay (Chapter) 7 Mantra 18 and 24: In the absence of Tatvgyan, the unknowledgeable gurus have misled us in Holy Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 7 Mantra 18 and 24 by giving the meaning of 'Anuttamam' as 'Ati Uttam' (very good) and in Adhyay 18 Shlok 66, they have given the meaning of 'Vraj' as 'to come'; whereas the meaning of 'Anuttamam' is 'very bad' and that of 'Vraj' is 'to go'.

Because of their ignorance, the entire devotee community, by doing worship opposite to the scriptures, is wasting the human life (Holy Shrimad Bhagavad Gita Adhyay 16 Mantra 23-24). All the sacred souls of all the holy religions are not familiar with the Tatv Gyan (True Spiritual Knowledge). As a result of this the fake gurus, saints, mahants and rishis are taking advantage of it. When the holy devotee society will become acquainted with the (Tatvgyan) true spiritual knowledge, then these fake saints, gurus and acharyas will not find a place to hide. Satguru Ji says -

Ekae saadhae sab sadhae, sab saadhae sab jaaye ||
Maali seenchae mool ko, fale-foole aghaaye ||

Note :- To know the essence of Gita watch Spritual discourses of Jagatguru Tatvdarshi Saint Rampal Ji Maharaj Ji on Sadhana channel 7:30 pm IST.

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Tuesday, 12 May 2020

Today in Kalyug the most difficult question before the devotee community is to identify a Complete Guru.

Today in Kalyug the most difficult question before the devotee community is to identify a Complete Guru. 


But its answer is very short and simple, that a guru who does Worship according to the scriptures and makes his followers i.e. disciples do it, only he is a Complete Saint. Because religious scriptures like- speech of Kabir Sahib, speech of Shri Nanak Sahib Ji, Saint Garibdas Ji, Saint Dharmdas Ji, Vedas, Geeta, Puran, Quran, Holy Bible etc. are the constitution of the path of Worship. Whichever saint tells Religious actions(sadhana) and shows the path to the devotee community according to the scriptures, he is a Complete Saint; otherwise he is a big enemy of the devotee community who is making others do Religious actions opposite to the scriptures. He is playing with this invaluable Human life. Such a guru or saint will be hung upside-down in deep hell in God's court.
        
      
According to Shrimad Bhagawat Geeta Chapter 7, verse 15

Those whose knowledge has been stolen away by Maya, such men who have demoniac nature, who are lowest among men, the evil-doers, fools, don't worship me i.e. they keeps doing worship of the three gunas (Rajgun-Brahma, Satgun- Vishnu, Tamgun-Shiv).

According to Yajurved Chapter no. 40, Verse 10

About the God, normally say that He is formless i.e. who never takes birth. Others say that He is in form i.e. takes birth in the form of an incarnation. Those who, endowed with durable i.e. complete knowledge, narrate properly, in this way they only properly i.e. in true way give His clear and distinct knowledge.

According to Shrimad Bhagawat Geeta, Chapter no. 4, verse 34

Understand it by properly prostrating before those saints who know the true knowledge and solution of the Supreme God, by serving them, and by giving up deceit, asking questions with simplicity l, they, who know the Supreme God in essence i.e. knowledgeable Mahatmas, will instruct you in that True spiritual knowledge.

According to Yajurved Chapter 19 , verse 25

A True spiritual teacher is one who explains the coded words of the Vedas in detail; as a result of which Supreme God is attained. He is said to be the knower of the Vedas.

According to Yajurved , Chapter 19, verse 26

The Complete Saint about whom there is a mention in verse 25, he tellls to do worship three times ( morning- midday and in the evening ) in a day. Tells to do worship of Supreme God in the morning l, regard of all the gods at midday, and in the evening by means of sacred speech. He is a well-wisher of the entire world.

According to, Yajurved Chapter 19, verse 30

A Complete Saint only makes that person his disciple, who always maintains good conduct ; who gives the assurance of not consuming the prohibited food and intoxicating substances. A Complete Saint accepts charity from only that personwho becomes his disciple, and who after taking initiation from spiritual teacher, then gives charity-donation, by which devotion increases. By doing true worship with devotion, the Eternal God is attained i.e. one becomes completely liberated.
A Complete Saint will not wander about asking for alms and donations.

You must also listen to the satsang of Saint Rampal Ji and read the books written by Him. Which you can download for free from this link.





 The Satsang Time of Saint Rampal Ji
 :
 1. On Shraddha Channel from 2 :00 AM
 2. On Sadhana Channel from 07:30 PM
 3. On Ishwar Channel from 08:30 PM


The last identity is that he will give initiation of three types of mantras at three times. Its description is available in Kabir Sagar Granth, page no. 265 Bodh Sagar and Shrimad Bhagawat Geeta , chapter no. 17, verse 23 and in Samved Serial No.822.

It is clear from the aforesaid speech that Complete Saint provides upto Saarnaam in three stages and in the fourth stage provides Saarshabd. I had seen the evidance in Kabir Sagar afterwards, but already venerable Grandfather Gurudev and Supreme God Kabir Sahib ji had granted the method of updesh to my venerable Gurudev who, from the beginning , has been giving naam-daan to us in three stages.

My Gurudev ( spiritual teacher ) Saint Rampal Ji Maharaj in the first time give mantra of name of shri Ganesh ji, shri Brahma- Savitri ji, shri Lakshmi-Vishnu ji, shri Shankar-Parvati ji and Mother Sheranwali, who reside in the Chakras built in our Human body. A human being becomes suitable for doing worship after these Chakras open up.0

Also, if you want to make yourself and your family well-being, then you can get free initiation from Saint Rampal Ji.  Click here to fill the initiation form ...     

Sunday, 10 May 2020

COVID-19 news "IRCTC"

Corona virus (pandemic) 
                    COVID-19 news  "IRCTC"


          🌻The corona virus has proved to be the largest epidemic in the last hundreds of years. Even the World Health Organization has expressed concern, confirming this.
"IRCTC"
           


                🌺 The corona virus has taken the form of an epidemic all over the world, which is started from Wuhan(China). Till Today, about 29-30 lakh people have been infected with corona in all over the world, and also more than 2-2.5 lakh people have died from this infection.The point of concern is that there is no any vaccine or medicine has been found so far. And It is also unknown that how long The scientists will get it's vaccine. This virus seems to be changing it's form every day, because of which scientists from all over the world are unable to find it's vaccine. Every day a new symptom and thousands / millions of new patients are coming in front every day.
"IRCTC"

                  🌼 In a recently released European Union's report, "China has been accused of sharing misinformation." Also, a spokesperson of the EU said that, "This report was to be released before today(21 April), but due to pressure from the Chinese authorities, it has been delayed."
"IRCTC"

                      🌸At present, this corona virus is no less than the Third World War. Rather, in this epidemic, more population is seen to be ending than the world war.

     


                    🌹 Although all the doctors are treating this virus with different methods and medicines, due to which many patients have also benefited, but in some places this virus has been seen to flourish again. After which it has increased the fear that the corona virus is not going to end so easily. This may take the form of a long-lasting epidemic.





               But in all these, It is a matter of happiness that two cases of corona virus have been found, which have got rid of corona without taking any medicine and quarantine only after taking initiation from Saint Rampal ji. Apart from this, They told that ,"They are execute all their works according to the devotion told by Saint Rampal Ji. They also says that they did't get any treatment for corona nor took any medicine, only on the basis of devotion given by Saint Rampal Ji Maharaj Ji, they got this new life.
             

         
               

                   🥀 You must also listen to the satsang of Saint Rampal Ji and read the books written by Him. Which you can download for free from this link.👇📚

         https://www.jagatgururampalji.org/en/publications


The Satsang Time of Saint Rampal Ji
:
1. On Shraddha Channel from 2 :00 AM
2. On Sadhana Channel from 07:30 PM
3. On Ishwar Channel from 08:30 PM


                  🏵️🌷 Also, if you want to make yourself and your family well-being, then you can get free initiation from Saint Rampal Ji. Click here to fill the initiation form ...👇

       http://bit.ly/NamDiksha